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इस तरह की याचिका कैसे दायर की जा सकती है, हमें आकर समझाइए- सुप्रीम कोर्ट

डमरुआ डेस्क/नई दिल्ली- सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 20 और आर्टिकल 22 को लेकर एक बड़ी टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में बताने के लिए एक ‘एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड’ (एओआर) सहित दो वकीलों को उपस्थित होने को कहा है कि अनुच्छेद 20 और 22 को संविधान का उल्लंघन करने वाला घोषित करने के लिए कैसे याचिका दायर की जा सकती है. बता दें कि संविधान का अनुच्छेद 20 अपराधों के लिये दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण से संबंधित है, वहीं अनुच्छेद 22 कुछ मामलों में गिरफ्तारी और हिरासत से संरक्षण से जुड़ा है.

संविधान के अनुच्छेद 145 के तहत उच्चतम न्यायालय द्वारा बनाये गये नियमों के अनुसार शीर्ष अदालत में किसी पक्ष की तरफ से ‘एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड’ का दर्जा रखने वाले वकील ही दलील रख सकते हैं. याचिका में संविधान के अनुच्छेद 20 और 22 को अनुच्छेद 14 (विधि के समक्ष समानता) और 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा) सहित कुछ अन्य अनुच्छेदों का उल्लंघन करने वाला घोषित करने की मांग की गई है। यह याचिका न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आई.

पीठ में न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे. पीठ ने कहा कि उसके समक्ष इस आधार पर सुनवाई टालने का अनुरोध किया गया कि मुख्य वकील उपलब्ध नहीं हैं. पीठ ने 20 अक्टूबर को सुनाए गए अपने आदेश में कहा, ‘हम यह समझने के लिये चाहेंगे कि तथाकथित ‘मुख्य वकील’ और ‘एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड’ उपस्थित हों कि इस तरह की याचिका कैसे दायर की जा सकती है.’

शीर्ष अदालत ने मामले को 31 अक्टूबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया. पीठ ने तमिलनाडु निवासी याचिकाकर्ता के अनुरोध पर गौर किया, जिसमें कहा गया है, ‘भारत के संविधान के अनुच्छेद 20 और 22 को अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21 का उल्लंघन करने वाला घोषित करें.’

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