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देख रहे है ना बिलासपुरियंस, अरपा के संरक्षण और संवर्धन में कितने फिक्रमंद है अफसर ?

नदी में लगातार मिलाया जा रहा नाले का पानी, अरपा हुई मैली, अरपा की दुर्दशा का कौन है जिम्मेदार ? आखिर कब तक झेलेगी अरपा प्रदूषण की मार?

नदी में लगातार मिलाया जा रहा नाले का पानी, अरपा हुई मैली

अरपा की दुर्दशा का कौन है जिम्मेदार ? आखिर कब तक झेलेगी अरपा प्रदूषण की मार?

 

डमरुआ न्यूज/बिलासपुर। बिलासपुर शहर की लाइफ लाइन कही जाने वाली अरपा नदी के लगातार दोहन से इसकी दशा अत्यंत दयनीय हो गई है। कई वर्षो से लगातार प्रदूषित होने के कारण अब यह उपयोग के लायक नहीं रह गई है । शहर से निकलने वाले कचरे और नालों का पानी नदी में मिलने से इसकी स्थिति बद से बदतर हो चली है और दिनो – दिन इसकी स्थिति और भी खराब होती जा रही है।

दो दशक पहले तक स्वच्छ थी अरपा, लोग भी नदी का रखते थे ख्याल…

दो दशक पहले तक अरपा नदी स्वच्छ थी। लोग भी नदी का ख्याल रखते थे। जैसे-जैसे शहर ने विकास की रफ्तार पकड़ी और जनसंख्या बढ़ती गई, नदी का तेजी से दोहन होने लगा। शहर के सभी नालों का पानी नदी में छोड़ा जाने लगा। अब भी यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। ऐसे में नदी का पानी पूरी तरह से गंदा हो चुका है। जिसके उपचार के लिए देवरीखुर्द में अरपा एनीकट बनाया गया है। अब इस पर दो बैराज का भी निर्माण किया जा रहा है। इसका उद्देश्य नदी के पानी को रोकना था। पानी स्र्का भी। लेकिन यह शहर के नालों का गंदा पानी है। सालों से यह पानी जमाव होने के कारण भूमिगत जल भी प्रदूषित हो रहा है। नदी के आसपास क्षेत्र के घरों में भी यही दूषित पानी पहुंचता है। इसी वजह से इस क्षेत्र के लोग आए दिन डायरिया की चपेट में आ जाते हैं। इलाके से लगातार डायरिया संक्रमित सिम्स और जिला अस्पताल में पहुंचते ही रहते हैं। डाक्टरों ने भी बीमारी की वजह दूषित पानी को बताया है।

दैनिक दिनचर्या के लिए सालो से किया जाता रहा है उपयोग…

गौरतलब है कि सदियों से इन नदी पोखरों का उपयोग आमजनों के द्वारा दैनिक दिनचर्या के लिए किया जाता रहा है। शास्त्रों के अनुसार नदी, तालाब, कुंड आदि स्थानों में ही पूजा पाठ से संबंधित कार्य, मूर्तियों का विसर्जन, पितरो का तर्पण, छठपूजा, स्नान, ध्यान, तप, आदि करने की परम्परा है। जिसे हिंदू समाज के द्वारा अक्षरशः पालन किया जाता है, जो आज भी जारी है। लगातार नदियों में हो रहे जल प्रदूषण से नदी का जल अब उपयोग के लायक नही रह गया है। जिस ओर शासन-प्रशासन बिल्कुल भी चिंतित नजर नही आता।

इनके संरक्षण व सफाई से सम्बंधित योजनाये जो संचालित है, वह केवल कागजो तक ही सिमट कर रह गई है, इन योजनाओं को सही रूप से संचालित करने में किसी की दिलचस्पी नही दिखाई देती है। ना ही इससे संबंधित विभाग के कर्मचारियों और न ही किसी जनप्रतिनिधियों को इन नदियो में हो रहे प्रदूषण से सरोकार है। विदित हो कि अरपा नदी को प्रदूषण से बचाने,जल को स्वच्छ रखने के लिए नगरीय प्रशासन विभाग को कड़ी हिदायत भी दी गई है।

आस्था के साथ हो रहा खिलवाड़…

नदी का जल प्रदूषित होने की वजह से इस गन्दगी व बदबू से युक्त पानी मे ही सभी प्रकार के विसर्जन के कार्य करने के लिए श्रद्धावान मजबूर है। जिसके निराकरण पर त्वरित कार्यवाही की आवश्यकता है।

“अरपा के संरक्षण को लेकर किस विभाग के अफसर हैं, जो गंभीरता नहीं बरत रहे हैं।”

गौरतलब है कि अरपा नदी के संरक्षण व संवर्धन को लेकर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की गंभीरता भी सामने आ चुकी है। जस्टिस गौतम भादुड़ी के डिवीजन बेंच में इस जनहित याचिका पर सुनवाई हुई है । कोर्ट ने समिति से पूछा था कि *”अरपा के संरक्षण को लेकर किस विभाग के अफसर हैं जो गंभीरता नहीं बरत रहे हैं।” “दिशा निर्देशों के परिपालन में गंभीरता क्यों नहीं दिखा रहे हैं।”* डिवीजन बेंच ने राज्य शासन को नोटिस जारी कर कार्ययोजना के संबंध में जानकारी मांगी थी । साथ ही भूजल स्तर को बनाए रखने के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने व लोगों को जागरुक करने का निर्देश दिया है। साथ ही कोर्ट ने सख्ती भी दिखाई थी। इसका प्रभावी असर भी हुआ था। उस समय बिलासपुर कलेक्टर रहे सौरभ कुमार एवं कलेक्टर गौरेला – पेंड्रा – मरवाही ऋचा प्रकाश चौधरी की संयुक्त अध्यक्षता में अरपा रिवाइवल प्लान हेतु गठित विशेषज्ञ समूह की उपस्थिति में अरपा को पुनर्जीवित एवं प्रवाहपूर्ण बनाये रखने के लिए परिचर्चा आयोजित की गई थी।


परिचर्चा में कलेक्टर बिलासपुर सौरभ कुमार एवं कलेक्टर जीपीएम ऋचा प्रकाश चौधरी ने जिला स्तर पर नगर निगम द्वारा दूषित जल के स्वच्छ निवारण पश्चात नदी में प्रवाह, सिचाई विभाग द्वारा निर्माण संरचना पश्चात जल संरक्षण हेतु प्रचलित एवं प्रस्तावित कार्ययोजना, नदी में जल प्रवाह को निरंतर बनाये रखने निर्माण, नदी को प्रदूषित करने वालों पर जुर्माना एवं कार्यवाही, अवैध रेत उत्खनन पर कार्यवाही सहित आम जनों के सहयोग से वृहद वृक्षारोपण के प्रस्ताव दिए । जिस पर दोनो कलेक्टर्स द्वारा सहमति भी व्यक्त की गई थी।

नदी को बचाने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल भी गम्भीर, करोड़ों खर्च कर रहा जिला प्रशासन, नही दिख रहा प्रभावी असर…

अरपा नदी को प्रदूषण से बचाने और अरपा के जल को स्वच्छ रखने के लिए नगरीय प्रशासन विभाग को कड़ी हिदायत भी दी है। नदियों को प्रदूषण से बचाने के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल भी गम्भीर नजर आ रहा है। जिला प्रशासन भी इसे बचाने के लिए करोड़ों खर्च कर रहा हैं । लेकिन इसका कोई असर अब तक दिखाई नहीं पड़ रहा है।

अब भी नदी में शहर भर के नाली-नालों से गंदा दूषित पानी पहुंच रहा है। यह पानी देवरीखुर्द एनीकट में जमा हो रहा है। इस वजह से नदी में पानी लबालब नजर आता है। यह दिखने में तो बड़ा मनोहारी और सुंदर नजर आता है, लेकिन पानी अत्याधिक प्रदूषित हो चुकी है। पानी के एक जगह पर लंबे समय तक जमा रहने से इसमें जलकुंभी की भरमार हो गई है और दूषित पानी भूमिगत जल से लगातार मिल रहा है। ऐसे में नदी किनारे एवं आसपास के क्षेत्र में रहने वाले लोग जलजनित बीमारियों से लगातार पीड़ित हो रहे हैं। क्षेत्र में मच्छरों की भरमार हो गई है, दूषित पानी के उपयोग से इलाके में आए दिनों डायरिया के मरीज मिलते ही रहते हैं।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल व पर्यावरण संरक्षण मंडल के घेरे में निगम है। बिना ट्रीटमेंट के नालों का पानी अरपा नदी में छोड़े जाने के कारण बिलासपुर नगर निगम पर पर्यावरण संरक्षण मंडल ने जुर्माना भी ठोंका है। जिसके बाद नालों के पानी को ट्रीटमेंट के बाद ही नदी में प्रवाहित करने के संबंध में निगम ने पर्यावरण मंडल से मोहलत भी मांगी थी। लेकिन अब भी लगातार अरपा में नालों का दूषित पानी मिलाया जा रहा है, जो किसी उपयोग के लायक नही रह गई है।

नाले का अरपा में हो रहा संगम

नियमो की उड़ रही धज्जियां, प्रदूषण के आगोश में अरपा…

अरपा नदी में मिल रहे नाले के पानी के अलावा आम लोगो के द्वारा भी लापरवाही पूर्वक अपने घरों का कचरा, मलबा, और अपशिष्ट पदार्थ डालकर गन्दगी को बढ़ावा दिया जा रहा है। जिस पर प्रशासन का कोई अंकुश नजर नही आता है। जिससे पूरा क्षेत्र प्रदूषण के आगोश में है। नाले में बहकर आने वाले सड़े गले साग-सब्जियों, मछली, मटन, मुर्गा एवं अन्य प्रकार के अपशिष्ट पदार्थों तथा मरे हुए जानवरो को नदियों में मिलाने से यह लगातार प्रदूषित हो रही है। जिसे आसानी से देखा जा सकता है, लेकिन शासन – प्रशासन को इससे कोई सरोकार नहीं है और प्रशासन इन पर अंकुश लगाने में नाकाम साबित हो रहा है।

 

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