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कटंगपाली में डोलोमाइट खदानों और गड्ढों में फ्लाई एश भरने से बढ़ते खतरों पर प्रशासन और पर्यावरण विभाग की चुप्पी



सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले के ग्राम पंचायत कटंगपाली में स्थित डोलोमाइट खदानों और गड्ढों में अवैध रूप से फ्लाई एश भरने का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा। यह न केवल खनिज विभाग, बल्कि पर्यावरण विभाग के नियमों और प्रोटोकॉल्स का भी उल्लंघन कर रहा है। क्या विभागों की मिलीभगत और स्थानीय अधिकारियों की लापरवाही से यह खतरनाक गतिविधि जारी है? यह सवाल अब स्थानीय निवासियों और पर्यावरणीय विशेषज्ञों के मन में उभर रहा है।

क्या कहती है भारतीय कानून और पर्यावरणीय नियम?

भारत में खनन और पर्यावरणीय सुरक्षा के लिए कई कठोर नियम और कानून हैं, जिनका पालन सुनिश्चित करना अनिवार्य है। फ्लाई एश का गड्ढों या खदानों में भरना विभिन्न कानूनी और पर्यावरणीय कानूनों का उल्लंघन है:

1. वायु और जल प्रदूषण नियंत्रण (Air and Water Pollution Control)
फ्लाई एश में भारी धातुएं और जहरीले रसायन होते हैं, जो हवा और जल में मिलकर प्रदूषण का कारण बन सकते हैं। वायु और जल प्रदूषण नियंत्रण अधिनियम (1986) के तहत, प्रदूषणकारी गतिविधियों पर सख्त नियंत्रण है। फ्लाई एश का अवैध रूप से इस्तेमाल इसका उल्लंघन करता है और इससे आसपास के क्षेत्रों में गंभीर प्रदूषण फैल सकता है।


2. पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (Environmental Protection Act, 1986)
यह अधिनियम न केवल खनन गतिविधियों की निगरानी करता है, बल्कि खनिजों के अवैध प्रयोग और उनके पर्यावरणीय प्रभावों से भी संबंधित है। खदानों में फ्लाई एश भरने का कार्य पर्यावरणीय सुरक्षा मानकों का उल्लंघन है।


3. खनिज अधिनियम (Mines Act, 1952)
इस अधिनियम के अनुसार, किसी भी खनन कार्य के दौरान पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन करना और सुरक्षा मानकों का पालन करना अनिवार्य है। फ्लाई एश को खदानों में भरने से न केवल खनन की पारदर्शिता पर सवाल उठते हैं, बल्कि पर्यावरणीय अव्यवस्थाओं का भी निर्माण होता है।

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क्या कार्रवाई हो रही है?




कटंगपाली में डोलोमाइट खदानों और गड्ढों में फ्लाई एश भरने की यह अवैध गतिविधि, खनिज विभाग और पर्यावरण विभाग दोनों की चुप्पी की वजह से बढ़ रही है। स्थानीय अधिकारी इस गंभीर मामले को नजरअंदाज कर रहे हैं और इस पर कोई प्रभावी कदम नहीं उठा रहे।

पर्यावरणीय विभाग की जिम्मेदारी:
यह न केवल खनिज विभाग, बल्कि पर्यावरण विभाग की भी जिम्मेदारी बनती है कि वे इन गतिविधियों पर कड़ी निगरानी रखें। अगर यह प्रक्रिया बिना अनुमोदन और पर्यावरणीय सुरक्षा मानकों के चल रही है, तो यह पर्यावरणीय संकट को जन्म दे सकती है। विभाग को तुरंत इस मामले की जांच करनी चाहिए और संबंधित नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।

क्या होंगे इसके गंभीर परिणाम?



1. स्वास्थ्य पर असर: फ्लाई एश में भारी धातु होते हैं जो इंसान और पशु दोनों के लिए खतरनाक हो सकते हैं। यह श्वसन रोग, कैंसर और अन्य गंभीर बीमारियों का कारण बन सकते हैं।


2. जल स्रोतों का प्रदूषण: फ्लाई एश का मिश्रण जल स्रोतों में होने से पानी की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में जल संकट उत्पन्न हो सकता है।


3. पर्यावरणीय असंतुलन: फ्लाई एश भरने से भूमि असंतुलित हो सकती है, जिससे पर्यावरणीय असंतुलन पैदा होगा। वनस्पति और जैव विविधता पर भी इसका गहरा असर पड़ेगा।

क्या कदम उठाए जाएं?



1. खनिज और पर्यावरण विभाग की संयुक्त जांच: खनिज और पर्यावरण विभाग को मिलकर इस मामले की जांच करनी चाहिए। अगर यह पाया जाता है कि बिना किसी पर्यावरणीय मंजूरी के खदानों में फ्लाई एश भरा जा रहा है, तो तुरंत कार्रवाई की जानी चाहिए।


2. स्थानीय निवासियों और मीडिया का दबाव: अगर विभाग और अधिकारियों द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता, तो स्थानीय समुदाय और मीडिया को इस मुद्दे को उच्च न्यायालय और पर्यावरणीय संरक्षण संस्थाओं के सामने लाने का अधिकार है।

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