Damrua

नवगवा मामले मे FIR मे देरी, का कारण राजनीतिक रसूख ?

जांजगीर-चांपा: नवागांव दलित उत्पीड़न मामले में SC/ST थाना द्वारा दर्ज पूर्व बयान के बावजूद पीड़ित को दोबारा बुलावा — प्रशासन की मंशा पर उठे सवाल

नवागांव (अकलतरा विधानसभा) में अनुसूचित जाति समुदाय के युवक सतीश कुमार घोसले पर दो बार हुए कथित हमले के बाद अब तक FIR दर्ज नहीं हुई है। लेकिन इस बीच प्रशासन ने पीड़ित को पुनः बयान दर्ज कराने के लिए नोटिस जारी किया है, जबकि उनका बयान पहले ही SC/ST (अजाक) थाना प्रभारी द्वारा दर्ज किया जा चुका है।

अब उन्हें 27 जून को सुबह 10:30 बजे उप पुलिस अधीक्षक (अजाक) जांजगीर के समक्ष पेश होकर दोबारा बयान देने को कहा गया है।

बयान की पुनरावृत्ति: प्रक्रिया का हिस्सा या न्याय से भागने की चाल?

इस घटनाक्रम से न्याय प्रक्रिया की गंभीरता, प्रशासन की नियत और पीड़ित के मानसिक उत्पीड़न को लेकर गहरे सवाल उठ खड़े हुए हैं।

सतीश घोसले कहते हैं:

 “हमने पहले ही बयान दिया है। अब बार-बार क्यों बुलाया जा रहा है? FIR नहीं हुई, आरोपी खुले घूम रहे हैं, और हमें ही बार-बार बयान देने के लिए बुलाया जा रहा है।”

हमला, गालियाँ, धमकी — फिर भी FIR नहीं

13 और 15 जून की शाम को नवागांव में सतीश घोसले के घर पर गांव के सरपंच प्रतिनिधि परमानंद राठौर और उनके दर्जनों समर्थकों ने कथित रूप से हमला किया।

घटना में जातिसूचक गालियाँ, सामाजिक बहिष्कार और जान से मारने की धमकी जैसे गंभीर आरोप हैं।

SC/ST अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 की धारा 3 के तहत यह अपराध गंभीर और संज्ञेय की श्रेणी में आता है, जिसमें 24 घंटे के भीतर FIR दर्ज करना अनिवार्य है — लेकिन अब तक पुलिस की ओर से कोई प्राथमिकी नहीं दर्ज की गई है।

क्या यह दबाव का मामला है या फिर पीड़ित को थकाकर न्याय से दूर कर देने की रणनीति?

एक स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता ने बताया:

“बयान की दोबारा मांग करके पुलिस समय काट रही है। इससे केवल पीड़ित का हौसला टूटता है और आरोपी पक्ष मजबूत होता है।”i

कानूनी विशेषज्ञों की राय: यह ‘प्रक्रिया का दुरुपयोग’ हैय

“यदि SC/ST थाना प्रभारी ने बयान दर्ज किया है, तो वही अधिकृत दस्तावेज़ माना जाना चाहिए। दोबारा बयान लेना पीड़ित को भ्रमित करने और कार्रवाई टालने का तरीका भी हो सकता है।”

गांव की स्थिति: बाहर से शांत, भीतर से असंतोष

नवागांव में इस मामले ने गहराई से हलचल मचा दी है। गांव में सतह पर शांति भले हो, लेकिन पीड़ित पक्ष डरा हुआ है और हमलावर अब भी बेखौफ खुले घूम रहे हैं।

स्थानीय लोग प्रशासन की चुप्पी को “संविधान और न्याय के खिलाफ” मानते हैं।

एक ओर पीड़ित बार-बार बयान देकर भी न्याय के दरवाज़े पर खड़ा है, दूसरी ओर प्रशासन ‘प्रक्रिया’ का हवाला देकर कार्रवाई से बच रहा है।

बड़ा सवाल यह है कि —

क्या पुलिस को अपने ही SC/ST थाना प्रभारी की कार्रवाई पर भरोसा नहीं है?

क्या आरोपी का राजनैतिक रसूख प्रशासन की रीढ़ झुका रहा है?

और क्या यह मामला न्याय के बजाय फाइलों के जाल में उलझाया जा रहा है?

सतीश घोसले के दोबारा बयान के बाद क्या FIR दर्ज होगी?

या फिर दलित उत्पीड़न के यह गंभीर आरोप भी ‘कार्यवाही प्रक्रिया जारी है’ की घिसीपिटी परिभाषा में दम तोड़ देंगे?

 टीम डंरुआ इस मुद्दे पर नज़र बनाए हुए है। हम अगली रिपोर्ट में देखेंगे कि 27 जून को न्याय आगे बढ़ता है या फिर सिर्फ और एक नोटिस जुड़ता है।

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