Damrua

क्या फिर आ गया छलिया छलने को ?

क्या जांजगीर चाम्पा के भाग्य मे खड़ाऊ ही लिखा है ?

   नगर सरकार के की चुनावीय प्रकिया जोर पकड़ चुकी है, दोनों राष्ट्रीय दल के अपने अपने ढंग से चुनाव प्रचार मे जोर आजमाइश कर रही है, प्रचार के इस शोर को बढ़ाने बड़े बड़े नेता “चुनावक्षेत्र मे अभ्यर्थी ” के सारथी की तरह नजर आ रहे है |

  चुनावीय कोलहाल मे एक प्रश्न  अभी भी निरुत्तर है, क्या जांजगीर चाम्पा की जनता के भोलेपन का फायदा उठाया जाता है?  हर बार भाजपा के बड़े बड़े नेता चुनाव प्रचार मे आ जाते है औऱ उनके आभा मंडल के प्रभाव मे आ कर उन प्रत्याशीयों को जीताया जाता है जो संख्या बढ़ाने के अलवा कुछ नहीं कर पाते!

  इसे ऐसे समझ सकते है की, विगत सात साल मे दो बार प्रधानमंत्री मोदी का जांजगीर चांपा जिले में दौरा हो चुका है, और एक बार गृह मंत्री अमित शाह का परंतु दोनों ही नेताओ का चुनावीय दौरा था | दोनों ही नेता जांजगीर-चांपा में उल्टी जेब लेकर आए थे, उनके पिटारे में जांजगीर चाम्पा के लिए कोई भी सौगात नहीं था!

 पिछले लोकसभा चुनाव में राज्य के उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा जांजगीर चाम्पा मैं कई दिनों तक डेरा डाले बैठे रहे! परंतु जब छत्तीसगढ़ सरकार का बजट बना उसे समय किसी भी महान भाव को जांजगीर चांपा की याद नहीं आई! जांजगीर-चांपा जिले के लिए एक भी कार्य का अलॉटमेंट नहीं मिला !

    इससे एक बात तो स्पष्ट है कि यहां के स्थानीय नेता जांजगीर-चाम्पा की मांग – औऱ जनता की अपेक्षा को ये सोच कर अनदेखा करते है की चुनाव तो बड़े नेता आभामंडल में चुनाव जीता जा सकता है, अतिरिक्त मेहनत करने का क्या फायदा ?

    इस बार नगर सरकार के चुनाव में भाजपा के उपमुख्यमंत्री व गृह मंत्री पुनः चुनाव मे सक्रिय है, 

  क्या स्थानीय चुनाव भी बड़े नेताओं के नाम पर लड़ा जाय? क्या खड़ाऊ के सहारे नगर के विकास को छोड़ा जा सकता है?

यह प्रश्न इसलिए की उपमुख्यमंत्री ने मिडिया से बात करते हुये कहा है की विष्णु के सुदर्शन चल रहा है! 

   तो क्या कहा जा सकता है की छलिया फिर आ गया छलने को !

आम जन के बीच प्रश्न तो उठाने‎ लगा है, देखिये चुनाव मे यह प्रश्न क्या गुल खिलाती है!

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