समाचार विस्तार से: तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (TTD) बोर्ड के नवनियुक्त अध्यक्ष बी.आर. नायडू द्वारा दिए गए एक बयान ने विवाद उत्पन्न कर दिया है। नायडू ने सुझाव दिया कि तिरुपति मंदिर परिसर में केवल हिंदू धर्म को मानने वाले कर्मचारियों की ही भर्ती की जानी चाहिए। उनका कहना है कि इससे मंदिर की पवित्रता और धार्मिक आस्था का संरक्षण किया जा सकेगा।
यह बयान आते ही कई राजनीतिक और सामाजिक संगठनों ने इसका विरोध जताया है। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने इसे भारतीय संविधान में निहित धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन बताते हुए विरोध किया। अन्य राजनीतिक दलों ने भी इसे धार्मिक भेदभाव की ओर संकेत करते हुए इसे असंवैधानिक बताया है।
नायडू ने यह तर्क दिया कि मंदिर में कार्यरत सभी लोग हिंदू होने चाहिए ताकि धार्मिक प्रक्रिया में आस्था और समझ बनी रहे। इस नीति का समर्थन करने वाले लोग इसे धार्मिक स्थल की विशेषता बनाए रखने के लिए आवश्यक मानते हैं, जबकि विरोधियों का कहना है कि इस तरह का कदम बहु-धार्मिक और विविधता को मान्यता देने वाले भारतीय समाज के खिलाफ है।
यह मामला अब तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम की नीतियों और भारत में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार पर बहस को पुनः जीवंत कर रहा है।