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‏जांजगीर–चांपा में धान का ‘मेगा मिसिंग केस’! काग़ज़ों में 2.95 करोड़ का धान, मैदान में गायब—अधिकारी चुप, खेल गहरा

जांजगीर–चांपा।

धान उपार्जन सीज़न 2024–25 में जिले से एक बड़ा खुलासा सामने आ रहा है। सरकारी रिकॉर्ड में 73,664.38 क्विंटल धान दिखाया जा रहा है, जिसकी कीमत ₹2.95 करोड़ बैठती है।

लेकिन जब हकीकत जानने हमारी टीम जमीन पर पहुँची तो केंद्रों में मुश्किल से 10,000 क्विंटल धान मिला।

अब बड़ा सवाल—

कागज़ों में दर्ज लाखों क्विंटल धान आखिर गया कहाँ?

ये है पूरा कागज़ी खेल

● कुल खरीदी — 63,28,029.20 क्विंटल

● मिलरों को जारी — 52,96,678.60 क्विंटल

● संग्रहण केंद्र में भेजा गया — 10,31,350.56 क्विंटल

● कस्टम मिलिंग हेतु अतिरिक्त जारी — 2,14,990.20 क्विंटल

● नीलामी में क्रेता को दिया गया — 7,42,695.96 क्विंटल

इन सभी के बाद कागजों में उपलब्ध:

मोटा धान — 5,555.84 क्विंटल , सरना धान — 68,108.54 क्विंटल

कुल — 73,664.38 क्विंटल (1,84,161 कट्टी) कीमत — ₹2.95 करोड़

लेकिन जमीन पर मिला क्या?

 

जांच में—

केवल कुछ ढेरियाँ

कहीं भी 73 हजार क्विंटल के बराबर स्टॉक नहीं

अनुमानित मात्रा—10,000 क्विंटल से अधिक नहीं

यानी 63,664 क्विंटल धान गायब!

मूल्य में अंतर — लगभग ₹1.97 करोड़

अधिकारी क्यों बच रहे हैं?

जिला विपणन अधिकारी से बात करने की कोशिश की गई—

“मीटिंग में हूँ”

“अभी बात नहीं कर सकता”

“कागज देखना पड़ेगा”

लगातार ऐसे जवाब मिलते रहे।

सवालों से बचने ने शक को और पुख्ता कर दिया।

केंद्रों की संख्या भी फर्जी?

रिकॉर्ड में — 3 संग्रहण केंद्र

जमीनी हकीकत — सिर्फ़ 2 केंद्र

ध्यान दीजिए—संग्रहण केंद्र बढ़ाने से कागज़ पर स्टॉक दिखाना आसान होता है।

यही खेल यहाँ भी दिख रहा है।

क्या ये करोड़ों का घोटाला है?

इतना बड़ा अंतर—

धान की मात्रा में

केंद्रों की संख्या में

अधिकारियों के जवाबों में

कागज व वास्तविकता में

ये सभी संकेत साफ बताते हैं—

यह मात्र विसंगति नहीं, एक संगठित धान घोटाला हो सकता है।

क्योंकि—

धान गायब होने का मतलब है:

किसानों की मेहनत का गायब होना,

सरकार के पैसे का गायब होना,

और व्यवस्था की नाकामी का उजागर होना।

जिले की जनता पूछ रही—धान कहाँ है?

कागजों में 73,664 क्विंटल

ग्राउंड पर 10,000 क्विंटल

अंतर: 63,664 क्विंटल

मूल्य: ₹1.97 करोड़

आखिर ये करोड़ों का धान किसके संरक्षण में ‘साफ़’ हो गया?

कौन जिम्मेदार है?

क्यों नहीं हो रही पारदर्शी जांच?

 

जवाबदेही से बचने की कोशिश, लेकिन सवाल बड़ा

यह मामला अब किसी विभागीय त्रुटि का नहीं—

बल्कि सार्वजनिक धन, किसानों के हक़ और सरकारी विश्वसनीयता का है।

जवाब अनिवार्य है।

जांच जरूरी है।

और कार्रवाई अब टालने योग्य नहीं।

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