जले हुए, फटे और कम गिनती वाले बारदाने से समितियों को करोड़ों की चपत — विभाग चुप, वसूली चालू
जांजगीर-चाम्पा / सक्ति :धान खरीदी वर्ष 2024–25 की समीक्षा में सामने आए एक करोड़ छह लाख से अधिक की वित्तीय हानि का असली कारण अब धीरे-धीरे उजागर हो रहा है।जानकारी के मुताबिक यह पूरा खेल “धान खरीदी नीति” की 50-50 बारदाना व्यवस्था के भीतर ही रचा जाता है —जिसमें आधे नए बारदाने (नई पीपी बैग) और आधे पुराने बारदाने (मिलर से लौटाए गए) उपयोग में लाए जाते हैं।
नीति में दिखने में यह “संतुलन” भले हो, पर असलियत में यही भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा छेद बन चुका है।
कैसे होता है खेल
धान खरीदी में 50% नए बारदाने की आपूर्ति डीएमओ स्तर से होती है।इन नए बारदानों में ही खेल शुरू —अक्सर यह एसिड से जले, खराब बंडल, या कम गिनती वाले बैग निकलते हैं।
आपूर्ति ठेकेदार और विभाग के बीच मिलीभगत से हर बंडल में 3–5 बारदाने कम दिए जाते हैं।
दूसरी तरफ 50% पुराने बारदाने मिलर लौटाते हैं —
इनमें कटी-फटी, फफूंदी लगी या आधी गिनती के बारदाने डाल दिए जाते हैं।
जब समितियाँ इन्हें स्वीकार करने से मना करती हैं, तो बाद में अधिकारी की ढुलमूल और टालमटोल का रहता है, जो कभी अंजाम तक नहीं पहुँचता | और हर साल की दोहराई जाने वाली कहानी समितियाँ हर वर्ष खाद्य विभाग और डीएमओ को
लिखित शिकायतें भेजती हैं कि
“पुराने बारदाने फटे-पुराने हैं, वापसी योग्य नहीं हैं।”लेकिन हकीकत यह है कि आज तक किसी एक बारदाने की भी आधिकारिक वापसी नहीं हुई है।
शिकायतें फाइलों में दबी रह जाती हैं और
विभाग हर साल वही “पुराने बंडल” नए नामों से वापस भेज देता है। किसे होता है फायदा
खाद्य विभाग और डीएमओ स्तर पर बैठे अधिकारी,बारदाना आपूर्ति ठेकेदारों से सीधे आर्थिक लाभ पाते हैं।
समिति और खरीदी प्रभारी को बाद में “गुम बारदाना” के नाम पर वसूली नोटिस मिलता है।नतीजा —अधिकारी मलाई खाते हैं, ठेकेदार बच जाते हैं,और कर्मचारी व समिति सिस्टम की मार झेलते हैं।
जब कार्रवाई कागज़ों तक सीमित हो
इस साल की रिपोर्ट में 30 समितियों में 3,69,416 बारदाने और ₹1.06 करोड़ की हानि दर्ज हुई है।लेकिन ये आंकड़े बस एक कागज़ी अध्याय हैं।
असली सवाल यह है —
“अगर बारदाने फटे, घटिया और कम गिनती वाले हैं, तो दोष किसका?”
फिर हर साल वही अधिकारी, वही विभाग और वही ठेकेदार कैसे फिर से वही आपूर्ति करते हैं?
क्या सरकार की 50-50 नीति बारदाना माफिया के लिए 100% मौके में बदल चुकी है?
क्यों हर साल समिति की शिकायतें दबी रह जाती हैं?
क्या विभाग व डीएमओ ठेकेदारों की शह पर काम कर रहे हैं? क्या कोई ठोस ऑडिट होगा या फिर एक और “कागज़ी जांच” में सब सुलट जाएगा?
फिर शुरू हो जाएगी घोटाले की


























