धान खरीदी में करोड़ों की चूक — पुराने बारदाने का खेल उजागर, समितियों से वसूली का नया अध्याय शुरू!
जब नई खरीदी सिर पर, तब खुला पुराना हिसाब — समितियाँ सवालों के घेरे में, करोडो से अधिक का गड़बड़झाला
सक्ती / जांजगीर-चाम्पा
धान खरीदी वर्ष 2024–25 का पूरा एक साल बीत चुका है, और अब जबकि नई धान खरीदी की तैयारियाँ शुरू हो चुकी हैं,तभी सहकारिता विभाग ने पिछली खरीदी का “छिपा हुआ पिटारा” खोल दिया है।
सहायक आयुक्त सहकारिता एवं सहायक पंजीयक, जिला सक्ती द्वारा जारी रिपोर्ट (पत्र क्रमांक 730/आत/2025 दिनांक 24 अक्टूबर 2025) में सक्ति जिले की30 समितियों को कुल ₹1,06,24,806 की वित्तीय हानि बताई गई है।इतना ही नहीं — रिपोर्ट में बताया गया है कि कुल 3,69,416 बारदाने का हिसाब शेष है,
यानी लेखा तो पूरा दिखाया गया, पर बारदाने की असल सच्चाई अभी भी गोदामों के अंधेरे में छिपी है।
वही मुख्य कार्य पालन अधिकारी,
जिला सहकारी केंद्रीय बैंक मर्यादित, बिलासपुर के पत्र क्रमांक/ विपणन / धान खरीदी/25-26/2567 दिनांक 30/10/2025 मे धान उपार्जन वर्ष 2024–25 के लिए शेष बारदाना विवरण (जांजगीर-चांपा जिला)
कुल खरीदी केंद्रों की संख्या: 123
कुल शेष बारदाना (जूट बोरी) की संख्या: 3,68,727
कुल अनुमानित राशि: ₹1,15,02,073.12
यह आंकड़े जांजगीर – चाम्पा जिले के अंतर्गत आने वाली सभी शाखाओं के उपार्जन केंद्रों को जोड़कर तैयार किए गए हैं।
जिसमे समिति के कमीशन से रकम कटने तथा बैंक के नुकसान की भर पाई सम्बंधित कर्मचारी से करने की बात कही गई है |
पुराने बारदाने का खेल
सूत्रों के अनुसार, धान खरीदी में सबसे बड़ा खेल पुराने बारदाने की वापसी के समय होता है।
जब मिलर (चावल मिल संचालक) पुराने बारदाने लौटाता है,
तो बंडल के बीच ऐसे फटे, सड़े, या उपयोगहीन बारदाने डाल देता है,
जिन्हें समितियाँ वापस लेने से इंकार कर देती हैं।
नतीजा — ये बारदाने “गायब” दिखाए जाते हैं और पूरे साल बाद कागजों में “हानि” के रूप में दर्ज कर दिए जाते हैं।
हर साल वही कहानी
यह कोई नया मामला नहीं है।
जानकार बताते हैं कि हर साल 10 से 20 समितियाँ इसी तरह के “बारदाना प्रकरण” में फंसती हैं।
फाइलें बनती हैं, नोटशीट्स तैयार होती हैं,
और कुछ महीनों बाद कागजों में सब ‘सुलझ’ भी जाता है —
लेकिन बारदाने और रकम का कोई ठोस हिसाब कभी सामने नहीं आता।
भय-दोहन की परंपरा
स्थानीय सूत्रों का आरोप है कि यह पूरा खेल वास्तव में अधिकारियों द्वारा भय-दोहन (Fear Extraction) का एक तरीका है।
रिपोर्ट जारी होती है, समितियों के कर्मचारियों पर दबाव बनाया जाता है,
और फिर “मामले के निपटारे” के नाम पर भारी रकम वसूली की जाती है।
अंततः सब कुछ कागजों में ही समाप्त कर दिया जाता है — न जांच, न जिम्मेदारी, न पारदर्शिता।
अब सवाल जनता के:
ज़ब पूरा साल बीत गया, तब जाकर यह रिपोर्ट क्यों आई?
बारदाने का मूल्यांकन अब तक क्यों नहीं जोड़ा गया?
क्या यह लेखा गड़बड़ी है या “कागज़ी कमाई” का जरिया?
क्या किसी अधिकारी या मिलर पर जिम्मेदारी तय की जाएगी?
विभाग के आदेश मे कहा जा रहा है
“समितियाँ अपनी वित्तीय हानि का ब्यौरा आवश्यक औपचारिकताओं सहित प्रस्तुत करें, अन्यथा नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।”
लेकिन जनता पूछ रही है
“जब बारदाने और रकम दोनों के खेल हर साल दोहराए जाते हैं,
तो कार्रवाई हर बार कागज पर ही क्यों रुक जाती है?”


























