Damrua

वर्दी के मद में मस्त ! माननीय सुप्रीम कोर्ट की अवमानना कर रही रायगढ़ जिले की पुसौर पुलिस

बेलगाम हुए थानेदार , कप्तान के हाथ से छूटी प्रभारियों की डोर

Damrua News/ रायगढ़। वर्दी के मद में मस्त रायगढ़ जिले की पुसौर पुलिस अब माननीय उच्चतम न्यायालय के दिशानिर्देशों की धज्जियां उड़ाने में भी पीछे नहीं है। ताजा हालात देखकर तो यही लगता हे कि कप्तान की कप्तानी बेलगाम प्रभारियों की मनमानियों के आगे धरासाई हो चुकी है।
अर्नेस कुमार बनाम स्टेट ऑफ बिहार एवं सतेन्द्र कुमार अंटिल बनाम सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इनवेस्टीगेशन एवं अन्य के प्रकरण में माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देशानुसार जिन अपराधों में 7 साल तक की सजा का प्रावधान है उन मामलों में पुलिस आरोपियों को गिरफ्तार नहीं करेगी, और यदि पुलिस ऐसा करती है तो संबंधित पुलिस अधिकारियों व कर्मचारियों पर कानून का डंडा चलेगा और उन्हें अपनी वर्दी से भी हाथ धोना पड़ेगा। यही नहीं बल्कि यदि कोई न्यायाधीश ऐसे मामलों को नजरंदाज करता है जिसमें उपरोक्त न्याय दृष्टांतों की अवहेलना होती है तो उन पर भी वरिष्ठ न्यायालय संज्ञान लेकर कार्रवाई कर सकता है।
ये तो रही बात कानून की, अब पुसौर पुलिस का कानून क्या कहता है जरा इस पर गौर फरमाईये….। पुसौर पुलिस का कहना है कि मामला भले ही जमानतीय हो लेकिन यदि वह ठान ले तो किसी भी व्यक्ति को जेल की हवा खिला सकती है, मन मुताबिक धारा कभी भी बढ़ा सकती है। अब जरा एक कदम बढ़ कर पुसौर पुलिस के इस फार्मूले को भी समझिए कि आखिर कैसे वो माननीय उच्चतम न्यायालय के दिशानिर्देशों की धज्जियां उड़ाने पर आमादा है। पुसौर पुलिस का कहना है कि यदि किसी मामले में गंभीर धाराएं नहीं भी लगी हैं और संबंधित व्यक्ति को जेल भेजना है तो इसके लिए बेहद आसान फार्मूला है। पहले संबंधित प्रकरण में आरोपी को थाना बुलवाओ फिर धारा 151 (पुरानी) लगाकर तहसीलदार को फोन कर दो कि आरोपी को 4 दिन के पहले जमानत मत देना!

अर्थात् राजस्व विभाग को चला रहे थानेदार!

हैरानी की बात यह है कि यह सब उस विधानसभा क्षेत्र में हो रहा है कि जहां से ओपी चौधरी विधायक एवं छत्तीसगढ़ के राजस्व मंत्री हैं। इन थानेदारों को आखिर इतनी हिम्मत देता कौन है, और इन तहसीलदारों को थानेदारों के इन फरमानों को सर-आंखों पर रखना होगा यह निर्देश राजस्व विभाग ने कब जारी किया है। धन्य है रायगढ़ की यह धरा जहां वर्दी के खौफ और मनमानी के आगे कानून की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। ….यदि ऐसा है तो बेहद आश्चर्यजनक और शर्मनाक बाते हैं।

जब मामला पहुंचा अदालत तब जज ने क्या कहा

पुसौर पुलिस की मनमानी के विरूद्ध एक आवेदन रायगढ़ न्यायालय में पहुंचा, जहां न्यायाधीश ने कहा कि संबंधित प्रकरण में जिन धाराओं का उल्लेख है उनमें अन्तरिम जमानत की कोई आवश्यकता नहीं है। जब न्यायालय को पुलिस की मनमानी के संबंध में अवगत कराया गया तब न्यायालय ने पुसौर थाने के विवेचक को तलब कर लिया और उसे कानून का पाठ पढ़ाया गया ।

आखिर क्या है पूरा मामला

सोसल मीडिया में एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें दो महिलाओं ने एक महिला की पिटाई कर दी। पीड़िता ने उन महिलाओं पर तो आरोप लगाया ही साथ ही उन महिलाओं के सभी सगे संबंधियों, रिश्तेदार के अलावा दूसरे गांव के भी कुछ लोगों पर मारपीट का आरोप लगाया। जबकि आरोपी पक्ष की माने तो वायरल वीडियो में केवल एक पार्ट को ही दिखाया गया है जबकि सच्चाई इसके एकदम उलट है। दरअसल शिकायतकर्ता ने पूरे प्लालिंग से इस घटनाक्रम को अंजाम दिया है साथ ही उसने अपने ही ड्राईवर से उक्त वीडियों को सूट भी करवाया है ताकि केवल उसके काम की चीजें ही वायरल किया जा सके। जो जानकारी सामने आ रही है उसके मुताबिक प्रार्थिया पहले तो अपने परिजनों के साथ बिना इजाजत जबरन एक घर में घुस गई और वहां स्वयं को उस घर की बहू बताने लगी जब घर के लोगों ने उससे पूछताछ की तो उसने अपने परिजनों व ड्राइवर के साथ वहां महिलाओं से हाथापाई शुरू कर दी इस घटना में कई लोगों को चोट पहुंची है। इसके बाद जब शिकायतकर्ता व उसके परिजन गाड़ी स्टार्ट कर जाने लगे तो चोटिल महिलाओं ने उस शिकायर्ता को पकड़कर उसकी खातिरदारी कर दी, जैसा की शिकायतकर्ता की प्लानिंग थी और उसी का फायदा उठाते हुए उसके ड्राइवर ने केवल इतना ही वीडियो बनाया और उसे वायरल कर पुलिस अधीक्षक के पास कार्रवाई के लिए पहुंच गए। अब पुलिस आधे अधूरे वीडियों को देखकर इस नतीजे पर पहुंच गई कि मारपीट की घटना में बिना दूसरे पक्ष का कथन लिए ही शिकायर्ता द्वारा बताए गए आरोपियों की तलासी अभियान इस स्तर पर शुरू कर दी जैसा कि बस्तर में नक्सलियों और जम्मू-काश्मीर में आतंकियों की खोज की जाती है। पुलिस को इस प्रकरण में भी इतना उतावलापन न दिखाते हुए दोनों पक्षों की शिकायतों को लेना था और जांच के उपरांत जो भी वैधानिक कार्यवाही जरूरी होती तो उसे करनी थी, लेकिन पुसौर पुलिस अपने अधिकारियों के कथित दबाव में आकर इस हद तक चली गई कि आरोपियों के परिजनों से यह तक कहने से नहीं चूकि कि हम धारा 151 लगाकर तहसीलदार के समक्ष पेश कर देंगे और उसे फोन कर देंगे कि वो 4 दिन पहले जमानत न दे !

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