क्या धमकी भरी सीरीज,पत्रकारिता पर भारी हो सकती है?
सवाल करती पत्रकारिता इन दिनों स्वयं सवालों के घेरे में है। पत्रकारिता का प्रथम पाठ यही पढ़ाया जाता है कि जिसके पास जितने अधिक सवाल होंगे, जितनी अधिक जिज्ञासा होगी, वह उतना कामयाब पत्रकार होगा। आज भी सवालों को उठाने वाली पत्रकारिता की धमक अलग से दिख जाती है,
वर्तमान समय में पत्रकारिता सवाल नहीं कर रही है, बल्कि पत्रकारिता सवालों के घेरे में है। पत्रकारिता को लेकर जो सवाल दागे जा रहे हैं, वह कुछ अधकचरे हैं
पत्रकारिता की विश्वसनीयता को लेकर सबसे पहला सवाल होता है।
*निजी संयंत्र का कर्मचारी अपनी रोजी रोटी कमाए पत्रकारिता न करें तो अच्छा है। अन्यथा उसे नौकरी से निकलवाने की कुसीत प्रयास किया जाय?
*संवाददाता नियुक्ति परिचय पत्र, स्थानीय पुलिस सचरित्र प्रमाण पत्र, मीडिया संस्थान की जिला जनसंपर्क कार्यालय संबद्धता एवं RNI रजिस्टर्ड नंबर ?
इन प्रश्नन्नो का जवाब संविधान निर्माताओ ने दिया हैं,
“कोई भी आजादी पूर्ण नहीं होती! प्रेस को अलग से कोई अभिव्यक्ति की आजादी प्राप्त नहीं हैं! प्रेस को कोई ऐसा अधिकार नहीं प्राप्त है, जो किसी भारतीय नागरिक को उसकी व्यक्तिगत क्षमता में नहीं प्रदान किया जाता! प्रेस का संपादक प्रबंधक या उसका एडिटर
जब भी कोई समाचार लिखता है, तब वह भारतीय नागरिक होने के अधिकार का उपयोग करता है,”
यदि इसे बोल चाल की भाषा मे कहे तो भारत के प्रत्येक नागरिक को संविधान में अभिव्यक्ति की आजादी प्रदान की है, जो उसे अपने विचारों को व्यक्त करने की आजादी प्रदान करता है!
पत्रकारिता एक मिशन थी, यह प्रोफेशन में कदाचित ऐसे ही प्रश्न करने वालों की वजह से मिडिया का वेश धर लिया! मीडिया इंडस्ट्री की बात करे तो यह विशुद्ध व्यवसाय है! जिसके लिए नियुक्ति परिचय पत्र,मीडिया संस्थान की जिला जनसंपर्क कार्यालय संबद्धता एवं RNI रजिस्टर्ड नंबर की आवश्यकता होती हैं!
परन्तु अपनी अभीव्यक्ति को सविधान के दायरे मे रह कर व्यक्त करने के लिए संवाददाता नियुक्ति परिचय पत्र, स्थानीय पुलिस सचरित्र प्रमाण पत्र, मीडिया संस्थान की जिला जनसंपर्क कार्यालय संबद्धता एवं RNI रजिस्टर्ड नंबर जैसे किसी चीज की आवश्यकता नहीं हैं,!
ये बात कदाचित इस तरह के प्रश्न उठाने वाले भी जानते हैं, क्योंकि जब उन्हें अपनी बात शासन प्रशासन या आम जनमानस तक पहुंचानी होती है, तब उन्हीं लोगों प्रेस वार्ता में बुलाते हैं!
पत्रकारिता अगर अविश्वसनीय हो गया होता तो समाज का ताना-बाना छिन्न-भिन्न हो गया होता। पत्रकारिता समाज का प्रहरी है और वह बखूबी अपनी जिम्मेदारी को निभा रहा है।
पत्रकारिता एकमात्र ऐसा स्रोत है जिससे अमर्यादित व्यवहार करने वाले, समाज की शुचिता भंग करने वाले और निजी स्वार्थ के लिए पद और सत्ता का दुरुपयोग करने वाले भयभीत रहते हैं। यह एक पक्ष है तो समाज का बहुसंख्य वर्ग जो किसी तरह अन्याय का शिकार है, व्यवस्था से पीडि़त है और उसकी सुनवाई कहीं नहीं हो रही है तब पत्रकारिता उसकी सुनता है और उसके हक में खड़ा होता है। इन दो पक्षों की समीक्षा करने के बाद यह आरोप अपने आपमें खारिज हो जाता है कि पत्रकारिता अविश्वसनीय हो चला है। अपितु समय के साथ पत्रकारिता समाज के लिए अधिक उपयोगी और प्रभावकारी के माध्यम के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है।
नगर के सन्दर्भ एक उदाहरण से आसानी से समझा जा सकता हैं :
चाम्पा दशहरा उत्सव मे हुए हादसे से घायल दो अलग अलग व्यक्ति की आज की स्थिति से समझा जा सकता हैं जिसमे मीडिया कवरेज के कारण एक व्यक्ति हरदी (अमोदा) के ग्रामीण अवधेश सिंह को जहां आर्थिक सहायता मिली तो दूसरी ओर मीडिया से छुपा कर रखे वायरमेन जवालाल जो नगरपालिका चाम्पा में कार्यरत हैं की इसी घटना में कमर की हड्डी क्रेक हो गई हैं जिसकी शासन प्रशासन के जिम्मेदार उसका हाल चाल जानने तक नहीं गए!
पत्रकारिता आज भी सौ फीसदी खरी है क्योंकि पत्रकारिता समाज की ताकत है। सरोकारी पत्रकारिता का केनवास छोटा दिख सकता है लेकिन उसके प्रभाव और परिणाम ही पत्रकारिता की धड़कन है!