Damrua

मां मंगला इस्पात की ईआईए रिपोर्ट में कॉपी-पेस्ट का खुला खेल, वन्यजीवों का विवरण गायब!

जनसुनवाई की तैयारी विवादों में

डमरूआ न्यूज़ /रायगढ़। रायगढ़ जिले के नेटावरपुर स्थित मां मंगला इस्पात प्राइवेट लिमिटेड की विस्तार परियोजना के लिए तैयार पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) रिपोर्ट में गंभीर त्रुटियां और कॉपी-पेस्ट का मामला सामने आया है। रिपोर्ट के कई हिस्से अन्य इस्पात उद्योगों की पुरानी रिपोर्टों से हूबहू नकल किए गए हैं, वहीं सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि रिपोर्ट में परियोजना क्षेत्र के वन्यजीवों का वास्तविक विवरण ही नहीं दिया गया है। इसके बावजूद कंपनी ने जनसुनवाई की प्रक्रिया शुरू कर दी है, जिससे स्थानीय लोगों और पर्यावरणविदों में नाराजगी है।

IMG 20251104 WA0407 585x351 1

कंपनी की विस्तार योजना में स्पंज आयरन उत्पादन को 60,000 टीपीए से बढ़ाकर 2,97,000 टीपीए करना, इंडक्शन फर्नेस और रोलिंग मिल का विस्तार, 32.5 मेगावाट क्षमता वाला विद्युत संयंत्र जोड़ना और 35,000 टीपीए फ्लाई ऐश ईंट निर्माण संयंत्र की स्थापना शामिल है। रिपोर्ट 18 दिसंबर 2024 को दिल्ली स्थित पर्यावरण मंत्रालय की विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (ईएससी) को प्रस्तुत की गई थी।
रिपोर्ट में क्षेत्रीय जैव विविधता का उल्लेख तो किया गया है लेकिन उसमें यह नहीं बताया गया कि नटवरपुर और उसके आसपास के जंगलों में कौन-कौन से वन्य प्राणी पाए जाते हैं, कौन सी प्रजातियां संरक्षित हैं और किन पर औद्योगिक प्रभाव पड़ सकता है। इसके स्थान पर रिपोर्ट में केवल इतना लिखा गया है कि संयंत्र स्थल की परिधि के चारों ओर एक घनी हरित पट्टी विकसित करने की सिफारिश की गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह पर्यावरणीय आकलन की मूल भावना का उल्लंघन है क्योंकि क्षेत्र के वन्यजीव और पारिस्थितिक संतुलन के बिना किसी भी अध्ययन को पूर्ण नहीं माना जा सकता।

वन्यजीवों का विवरण गायब, बस हरित पट्टी की सलाह

ईआईए रिपोर्ट में यह बताया गया है कि प्रस्तावित संयंत्र के अनुरूप क्षेत्र को सुरक्षित बनाए रखने के लिए संयंत्र स्थल की परिधि के चारों ओर एक मोटी हरित पट्टी विकसित करने की सिफारिश की गई है। लेकिन रिपोर्ट में यह उल्लेख नहीं किया गया कि संयंत्र स्थल और आसपास के वन क्षेत्रों में वास्तव में कौन-कौन से वन्य प्राणी निवास करते हैं। न ही यह बताया गया कि कोई संरक्षित या संकटग्रस्त प्रजाति वहां मौजूद है या नहीं। पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि यह गंभीर लापरवाही है क्योंकि वन्यजीवों के अध्ययन के बिना तैयार की गई रिपोर्ट अधूरी और भ्रामक मानी जाती है।

विस्तार परियोजना के प्रमुख बिंदु

स्थान – गांव नटवरपुर, तहसील घरघोड़ा, जिला रायगढ़
उत्पादन क्षमता – 60,000 टीपीए से बढ़ाकर 2,97,000 टीपीए स्पंज आयरन
32.5 मेगावाट क्षमता का कैप्टिव पावर प्लांट
35,000 टीपीए फ्लाई ऐश ईंट संयंत्र प्रस्तावित
पर्यावरणीय रिपोर्ट में अन्य उद्योगों से नकल किए गए हिस्से पाए गए

जब पर्यावरण रिपोर्ट ही पर्यावरण से कटी हो

पर्यावरणीय मूल्यांकन केवल दस्तावेजी प्रक्रिया नहीं बल्कि एक वैज्ञानिक जिम्मेदारी है. यदि किसी रिपोर्ट में क्षेत्र के वास्तविक वन्यजीवों और पारिस्थितिकी का उल्लेख तक न हो, तो वह अध्ययन केवल एक औपचारिकता बनकर रह जाता है। मां मंगला इस्पात की रिपोर्ट में जो लापरवाही सामने आई है, वह बताती है कि उद्योगों के दबाव में पर्यावरणीय प्रक्रिया कितनी खोखली हो चुकी है। यदि इस तरह के अधूरे और नकल आधारित दस्तावेजों के आधार पर परियोजनाओं को मंजूरी दी जाती रही, तो रायगढ़ जैसे जिले में प्रदूषण और पर्यावरणीय क्षति की कीमत आने वाली पीढ़ियों को चुकानी होगी।

Facebook
WhatsApp
Twitter
Telegram