चांपा। यहां थाना में कानून नहीं, “थाने के अपने कानून” चलते हैं!
जो शिकायत लेकर पहुंचे, वही पिटकर निकले — और ऊपर से आरोपी भी बना दिए गए!
मामला चांपा के एक युवक से जुड़ा है, जिसकी चारपहिया गाड़ी में तोड़फोड़ हुई। गाड़ी का शीशा टूटा तो वह थाने पहुंचा रिपोर्ट लिखवाने, पर यहां पुलिसिया रुतबे की दीवार से टकरा गया।
कर्मचारी ने कुर्सी से उठे बिना ही कहा —
“इस पर अपराध दर्ज नहीं होगा, फयना दे दूँ? मंजूर है तो बोलो, वरना जहां जाना है जाओ!”
थोड़ा ऊँचा बोलने की देर थी कि पुलिसिया गुस्सा उफान पर आ गया।
थाने में मौजूद दो सितारा अफसर ने रिपोर्ट लिखने कहा, पर नीचे वालों का ‘रुतबा’ बीच में आ गया।
फरियादी ने जब कहा कि “मैं एसपी साहब के पास जाऊँगा”, तो एक जवान बोला —
“पुराना अपराधी है तू, एसपी की धौंस दिखाता है?”
और बस फिर क्या — थाने में ही जमकर धुनाई!
बताया जाता है, पुलिसकर्मियों ने गाली-गलौज करते हुए कहा —
“पहले तू अपना अपराध लिखवा, फिर अपनी माँ से पूछ…”
(यहां पुलिस ने खुलेआम अपशब्दों का इस्तेमाल किया।)
आधा रात गुज़री, परिवार समेत फरियादी एसपी बंगले के सामने धरने पर बैठ गया।
सुबह 8:30 बजे एसपी साहब ने बुलाया, कहा —
“CCTV देखा जाएगा, रिपोर्ट दर्ज होगी, भाई को छोड़ा जाएगा।”
लेकिन हुआ उल्टा!
CCTV दिखाए बिना ही FIR दर्ज कर दी गई —
बीएनएस की धारा 296, 121(1), 221, 132 में केस ठोंक दिया गया!
और मज़े की बात — सिपाही पंचराम पटेल व संजय कुमार केवट को प्रार्थी बनाकर उसी फरियादी के भाई को गिरफ्तार कर लिया गया।
अब सवाल ये —
क्या चांपा थाना सच में “जनता का थाना” है, या फिर “पुलिसिया साम्राज्य” बन चुका है?
एसपी कार्रवाई करेंगे या वर्दी फिर बच जाएगी?
शहर में चर्चा है — “यहां इंसाफ नहीं, इंसान ही कटघरे में खड़ा हो जाता है!”