जांजगीर-चाम्पा में नशीले पदार्थों और अवैध शराब की बिक्री ने कानून-व्यवस्था की नींव हिला दी थी। हालाँकि, पुलिस अधीक्षक विजय पाण्डेय के आने के बाद तस्वीर बदलनी शुरू हुई है। महिला कमांडो और ऐतिहासिक मुखबिर तंत्र के सहारे पुलिस ने जिस सख़्ती से अभियान छेड़ा है, वह उम्मीद जगाने वाला है। गाँव-गाँव तक फैले इस नेटवर्क ने तस्करों की नींद उड़ाकर रख दी है।
पुलिस – अकेला योद्धा
छापेमारी, धरपकड़ और ताबड़तोड़ दबिशें साफ़ करती हैं कि पुलिस ने शून्य सहिष्णुता की नीति अपना ली है। पर सवाल उठता है कि यह लड़ाई अकेले पुलिस क्यों लड़ रही है?
आबकारी विभाग – कैटर एंड मूवर्स
जिले का आबकारी विभाग, जो शराब और नशे पर रोक का मुख्य जिम्मेदार है, आज अपनी भूमिका खो चुका है। उसका काम केवल शराब दुकानों तक सप्लाई, हिसाब-किताब और चखना दुकान तक देखरेख बनकर रह गया है। असल में, विभाग अब कैटर एंड मूवर्स से ज्यादा कुछ नहीं। यह नाकामी नशे के खिलाफ़ लड़ाई को कमजोर कर रही है।
सोचिए, अगर आबकारी विभाग उतनी ही सक्रियता से काम करता जितनी पुलिस कर रही है, तो पुलिस की अमूल्य ऊर्जा महिला सुरक्षा, सड़क हादसों की रोकथाम, संगठित अपराध और गंभीर आपराधिक गिरोहों पर लग सकती थी। तब जिले की तस्वीर कहीं अधिक सुरक्षित और संतुलित होती। मगर आज पुलिस को अपना और आबकारी विभाग का दोनों का काम अकेले करना पड़ रहा है।
नशा केवल अपराध नहीं, बल्कि समाज और परिवार के विघटन का कारण है। पुलिस चाहे जितनी मुहिम चलाए, जब तक समाज साथ नहीं देगा और जब तक आबकारी विभाग अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाएगा, तब तक यह जंग अधूरी ही रहेगी।
एक सार बात कहे तो, एक तरफ पुलिस माफिया से खिलाफ संघर्ष कर रही है, तो दूसरी तरफ आबकारी विभाग चखना सर्व कर अपने कर्तव्य की इतिश्री मानने लगीहै जांजगीर-चाम्पा पुलिस का अभियान उम्मीद और भरोसा जगाता है। विजय पाण्डेय की सख़्ती ने यह साबित कर दिया है कि इच्छाशक्ति हो तो हालात बदल सकते हैं। लेकिन आबकारी विभाग की निष्क्रियता इस पूरी मुहिम पर सबसे बड़ा सवालिया निशान है। अब वक्त आ गया है कि आबकारी विभाग नींद से जागे, वरना पुलिस अकेली इस लड़ाई को जीतते-जीतते भी हार सकती है।