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कांग्रेस का मानसिक दिवालियापन: लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी

जब विपक्ष ही बौना हो जाए, तब लोकतंत्र अधूरा रह जाता है

लोकतंत्र की मजबूती केवल सत्ता पक्ष पर निर्भर नहीं करती, बल्कि विपक्ष की सशक्त भूमिका भी उतनी ही आवश्यक है। विपक्ष जनता को विकल्प देता है, सत्ता को जवाबदेह बनाता है और लोकतांत्रिक संवाद को जीवित रखता है। किंतु आज कांग्रेस की स्थिति देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि पार्टी अपने गिरते नैतिक मूल्यों और हताश राजनीति के कारण न केवल खुद कमजोर हो रही है, बल्कि लोकतंत्र को भी कमजोर कर रही है। हाल ही में छत्तीसगढ़ कांग्रेस आईटी सेल (कोरबा) द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 75वें जन्मदिन पर साझा किया गया पोस्ट इसका ताज़ा उदाहरण है। गधे की तस्वीर लगाकर “Happy Birthday Feku Ji” लिखना और “75 YEARS” का मज़ाक बनाना न तो राजनीतिक आलोचना है, न ही वैचारिक संघर्ष, बल्कि यह महज़ दिवालियापन और राजनीतिक हताशा का प्रदर्शन है।

कांग्रेस को अपने अतीत और विपक्ष की राजनीति से सबक लेना चाहिए। एक समय था जब भाजपा संसद में महज़ दो सीटों तक सिमटी हुई थी। लेकिन उस कठिन दौर में भी उसने संयम का परिचय दिया। यहां तक कि राजीव गांधी के कार्यकाल में हुए सिख दंगों जैसे संवेदनशील विषय पर भी भाजपा ने अत्यधिक संयमित बयान दिए। यह वही संयम और संगठन पर काम करने की नीति थी, जिसने भाजपा को धीरे-धीरे मजबूत किया और अंततः नरेंद्र मोदी जैसा नेतृत्व दिया।

इसके विपरीत आज कांग्रेस सत्ता से जितनी दूर होती जा रही है, उतनी ही उसकी भाषा गिरती जा रही है। मुद्दों पर बहस करने की बजाय पार्टी अब व्यक्तिगत अपमान और घटिया बयानबाजी पर उतर आई है। सवाल यह है कि क्या इस तरह की राजनीति से कांग्रेस सत्ता में वापसी कर पाएगी? जवाब स्पष्ट है—नहीं। जनता केवल ठोस मुद्दों, वैचारिक स्पष्टता और जिम्मेदार विपक्ष को ही विकल्प मानती है। अपमानजनक कटाक्ष भले ही तात्कालिक सुर्खियाँ बटोर लें, लेकिन वे जनता का स्थायी भरोसा कभी नहीं दिला सकते।

असल में गाली देना या मज़ाक उड़ाना दर्शकों के लिए पलभर का मनोरंजन तो हो सकता है, पर गाली देने वाला कभी भी जनता की नज़र में नायक नहीं बन सकता। इसके विपरीत, यदि कोई व्यक्ति—चाहे गलती उसी की क्यों न हो—गाली खाने के बाद भी संयम रखे और हाथ जोड़कर शालीनता से क्षमा मांगे, तो जनता का रोष भी धीरे-धीरे कम हो जाता है। राजनीति में यह मनोविज्ञान निर्णायक भूमिका निभाता है। भाजपा ने इसी मनोविज्ञान को समझा और संयम की राजनीति की, जबकि कांग्रेस आज उसी जगह गाली-गलौज को अपना हथियार मान बैठी है।

कांग्रेस की यह गिरावट केवल उसकी राजनीतिक आत्महत्या नहीं है, बल्कि यह पूरे लोकतंत्र के लिए भी खतरनाक है। जब विपक्ष कमजोर होता है, तब लोकतांत्रिक संतुलन बिगड़ता है। आज कांग्रेस की अपरिपक्वता का सीधा फायदा भाजपा को मिल रहा है—क्योंकि कांग्रेस जनता के सामने खुद को गंभीर विकल्प के रूप में पेश करने में असफल है।

कांग्रेस का मौजूदा आचरण इस बात का प्रमाण है कि पार्टी अपने रणनीतिक असफलताओं और सत्ता से दूरी को पचाने में असमर्थ है। लेकिन गालियों और भद्दे मज़ाक से न तो सत्ता वापसी होगी और न ही जनता का भरोसा जीता जा सकेगा। इतिहास गवाह है—संयम, गंभीरता और मुद्दों पर आधारित राजनीति ही जनता को आकर्षित करती है। भाजपा ने इसी रास्ते पर चलते हुए सत्ता का शिखर छुआ। यदि कांग्रेस अब भी नहीं संभली, तो वह न केवल अपनी प्रासंगिकता खो देगी, बल्कि देश को भी एक मजबूत विपक्ष से वंचित कर देगी—और यही लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ी चिंता है।

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