रायगढ़ के स्पेशल कोर्ट में सुनवाई पूरी, न्यायाधीश श्रीमती प्रतिभा वर्मा के न्यायालय ने सुनाया फैसला
पीड़िता को न्याय दिलाने शासन की ओर से पैरवी कर रहे थे विशेष लोक अभियोजक अनिल श्रीवास्तव
Damrua/रायगढ़। एक नाबालिग पीड़िता से दुष्कर्म करने वाले आरोपी पर दोष सिद्ध करते हुए रायगढ़ के विशेष न्यायालय में न्यायाधीश श्रीमती प्रतिभा वर्मा ने 20 वर्ष सश्रम कारावास की सजा सुनाई है। इस प्रकरण में पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए विशेष लोक अभियोजक अनिल श्रीवास्तव ने पैरवी की थी।
घटना दिनांक 21/03/2022 की है। इस दिन एक नाबालिग (18 वर्ष से कम) बच्ची स्कूल ड्रेस पहन कर घर से स्कूल के लिए निकली थी, लेकिन मोनू साहनी उम्र 20 वर्ष निवासी – जोगीडीपा ने उसको जामगांव ले गया। जामगांव में उसने पीड़िता से दुष्कर्म किया और वहीं से ट्रेन में उसे चांपा ले गया। चांपा स्टेशन में उतरकर पीड़िता को बस से अपने दोस्त के घर ले गया जहां रात में रूका और वहां फिर से उसने पीड़िता से दुष्कर्म किया। इधर दूसरी ओर पीड़िता के पिता स्कूल पहुंचे जहां बच्ची छुट्टी के बाद उन्हें नहीं मिली तब अपनी पत्नी के साथ जूटमिल थाने में बच्ची के गुमशुदगी की रिपोर्ट दिनांक 22/03/2022 को लिखाई, वहीं दिनांक 23/03/2022 को मोनू पीड़िता के साथ रायगढ़ आ गया तब पुलिस ने आरोपी की गिरफ्तारी कर पीड़िता को उसके परिजनों के सुपुर्द किया।
पुलिस द्वारा मोनू साहनी पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 363,366,376(2), (ढ) पाक्सो एक्ट की धारा 5(ठ) अंतर्गत धारा 6 का अंतिम प्रतिवेदन माननीय विशेष न्यायालय रायगढ़ में प्रस्तुत किया था। उक्त प्रकरण की सुनवाई विशेष न्यायालय में चलने के दौरान आरोपी पक्ष का कहना था कि पीड़िता नाबालिग नहीं बल्कि बालिग है एवं वह अपनी मर्जी से मोनू के साथ गई थी, मोनू उसे जबरदस्ती लेकर नहीं गया था और न ही उससे दुष्कर्म ही किया है। डाक्टरी परीक्षण रिपोर्ट में भी यह बात आई कि पीड़िता के साथ पूर्व में कभी संबंध बनाया गया होगा, वर्तमान में इस प्रकार के कोई तथ्य जांच के दौरान नहीं पाए गए हैं। आरोपी पक्ष ने न्यायालय में यह दलील भी दी कि उम्र के संबंध में पीड़िता और उसके अभिभावक अलग-अलग दिनांक और वर्ष बतला रहे हैं। न्यायालय में अभियोजन पक्ष की ओर से दी गई दलीलों और न्याय दृष्टांतों के आधार पर विशेष न्यायालय ने यह निष्कर्ष निकाला कि स्कूल के सर्टिफिकेट्स में जो उम्र पीड़िता की लिखी हुई है वही जन्म तिथि सही है एवं यदि उस जन्मतिथि को माना जाता है तो पीड़िता घटना के समय नाबालिग थी। साथ ही नाबालिग होने की दशा में यदि नाबालिग की सहमति है भी तो उसकी सहमति मायने नहीं रखती बल्कि उसके अभिभावक की सहमति आवश्यक है। उक्त प्रकरण में अभिभावक की जानकारी के बिना एवं अभिभावक से छिपाते हुए उनकी बेटी को ले जाना पाया गया एवं उसके साथ विभिन्न तारीखों एवं स्थानों पर दुष्कर्म करने की बात को आरोपी पक्ष अपने दावों से झुठला नहीं सका। इन स्थितियों में न्यायाधीश श्रीमती प्रतिभा वर्मा ने अभियुक्त मोनू साहनी को एक नाबालिग लड़की से दुष्कर्म का दोषी माना। जिसके लिए 20 वर्ष सश्रम कारावास की सजा सुनाया गया।