साथ ही आरोप यह था कि 100 करोड़ रुपये की रिश्वत में से 45 करोड़ रुपये गोवा चुनाव के लिए हवाला के जरिये आम आदमी पार्टी को हस्तांतरित किए गए थे। हालंकि, सुप्रीम कोर्ट ने नोट किया कि आप पर मुकदमा नहीं चलाया जा रहा है। लिहाजा कोर्ट ने कहा कि यह आरोप नहीं लगाया जा सकता है कि मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम 2002 की धारा 70 के तहत सिसोदिया परोक्ष रूप से उत्तरदायी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि गोवा चुनाव के लिए आप को 45 करोड़ रुपए के ट्रांसफर में सिसोदिया की संलिप्तता के संबंध में कोई विशेष आरोप नहीं है।
-
सब पर समान रूप से लागू होता है कानून
पीठ ने कहा, कानून के शासन का अर्थ है कि कानून सरकार समेत सभी नागरिकों और संस्थानों पर समान रूप से लागू होते हैं। कानून के शासन के लिए हाशिये पर पड़े लोगों के लिए न्याय तक पहुंच के समान अधिकार की आवश्यकता है। सिसोदिया की अर्जी खारिज करते हुए पीठ ने कई पहलुओं पर गौर किया। पीठ ने कहा, सीबीआई ने बताया है कि साजिश और उसमें सिसोदिया की संलिप्तता पूरी तरह स्थापित होती है। पीठ ने कहा, स्पष्टता के लिए, बिना कोई जोड़, घटाव या विस्तृत विश्लेषण किए, हम अपीलकर्ता के खिलाफ सीबीआई के आरोप पत्र में कही गई बातों को दोहराते हैं।
-
इन मामलों को मौत की सजा उम्रकैद जैसे अपराधों से जोड़ना उचित नहीं
पीठ ने फैसले में कहा, हालांकि अभियोजन एक आर्थिक अपराध से संबंधित हो सकता है, फिर भी इन मामलों को मौत की सजा, आजीवन कारावास, दस साल या उससे अधिक की सजा के अलावा एनडीपलीएस कानून के अपराधों के साथ जोड़ना उचित नहीं होगा। इसे हत्या, दुष्कर्म, फिरौती के लिए अपहरण, सामूहिक दुष्कर्म जैसे मामलों की तरह भी नहीं देखा जा सकता।
-
कानूनी सवालों के जवाब नहीं मिले
पीठ ने कहा, दलीलों के दौरान कुछ कानूनी सवाल उठे, लेकिन जवाब नहीं मिला। जस्टिस खन्ना ने कहा, इन सवालों का अगर उत्तर आया भी तो वह बहुत ही सीमित था। पीठ ने सिसोदिया के इस तर्क पर भी गौर किया कि सीबीआई के 294 और डीओई के 162 गवाहों व दोनों की ओर से क्रमश: 31,000 और 25,000 पन्नों के दस्तावेजों के बाद भी आरोपों पर बहस शुरू नहीं हुई है।
-
सिसोदिया को 2.20 करोड़ रिश्वत देने का दावा आरोप नहीं है
पीठ ने बिचौलिये दिनेश अरोड़ा की ओर से सिसोदिया को 2.20 करोड़ रुपये की रिश्वत देने वाले दावे पर कहा कि यह कोई आरोप नहीं है। सीबीआई ने अपने आरोपपत्र में भी इसका जिक्र नहीं किया है। धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत इस भुगतान को आपराधिक आय साबित करना मुश्किल हो सकता है।