
डमरुआ डेस्क// सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर ने कहा है कि ऐसा लगता है कि अदालतें जमानत देने या इनकार करने के मूल सिद्धांत को भूल गई हैं। इसके साथ ही उन्होंने अधूरी चार्जशीट दाखिल करने और सिर्फ आरोपियों को जेल में रखने के लिए दस्तावेज मुहैया नहीं कराने जैसी जांच एजेंसियों की मंशा पर गौर करने की न्यायपालिका की अनिच्छा को बेहद दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया।
शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश ने एक साक्षात्कार में कहा कि न्यायपालिका को जीवन की वास्तविकताओं के प्रति जागने की जरूरत है, लेकिन नेताओं से जुड़े भ्रष्टाचार के हर मामले में राजनीतिक प्रतिशोध का आरोप लगाना बहुत मुश्किल है। संदेह तब पैदा होता है जब संदिग्ध की वफादारी बदलने पर जांच बंद कर दी जाती है।
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यदि किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया
आप नेता मनीष सिसोदिया को जमानत देने से इनकार करने के बारे में एक सवाल के जवाब में न्यायमूर्ति लोकुर ने कहा, ‘आम तौर पर ऐसा लगता है कि अदालतें जमानत देने या इनकार करने के मूल सिद्धांतों को भूल गई हैं। आजकल, यदि किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है, तो आप आश्वस्त हो सकते हैं कि वह कम से कम कुछ महीनों के लिए जेल में होगा।’