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सुप्रीम कोर्ट ने ‘वोट के बदले नोट’ फैसले पर पुनर्विचार के बाद फैसला रखा सुरक्षित,जानने के लिए आगे पढ़ें….

डमरुआ न्युज/सुप्रीम कोर्ट ने वोट के बदले नोट मामले में दिए अपने फैसले पर पुनर्विचार के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है। बता दें कि अदालत इस मामले पर विचार कर रही है कि सांसदों-विधायकों को सदन में दिए भाषण और वोट के बदले रिश्वत लेने के मामले में मुकदमे से छूट देना सही है या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने साल 1998 के अपने एक फैसले में सांसदों-विधायकों को यह छूट दी थी। बुधवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर मामले से आपराधिकता जुड़ी होगी तो अदालत मुकदमा चलाने की मंजूरी देने पर विचार कर रही है।

संविधान पीठ ने इस मामले में अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमानी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सहित कई वरिष्ठ वकीलों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है। तुषार मेहता ने सुनवाई के दौरान कहा कि अदालत से संविधान के अनुच्छेद 105 के तहत छूट के पहलू पर नहीं जाने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि रिश्वतखोरी का अपराध तब पूरा होता है जब रिश्वत दी जाती है और दूसरे पक्ष द्वारा उसे स्वीकार किया जाता है। इससे भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम से निपटा जा सकता है।

  • संविधान पीठ ने इन मुद्दों पर किया विचार

वोट के बदले नोट मामले में सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संविधान पीठ ने सुनवाई पूरी की। बुधवार को सुनवाई के दौरान पीठ में शामिल मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि किसी सांसद-विधायक के आपराधिक कृत्य में भी क्या सदन में मिला विशेषाधिकार उन्हें मुकदमे से बचा सकता है? क्या कानून के दुरुपयोग की आशंका पर राजनीतिक भ्रष्टाचार को छूट देनी चाहिए?

  • क्या है मामला

बता दें कि झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन और उनकी पार्टी के चार सांसदों पर आरोप लगा था कि 2012 के राज्यसभा चुनाव के दौरान उन्होंने विशेष उम्मीदवार को वोट देने के बदले रिश्वत ली थी। इस मामले में सीबीआई ने मामला दर्ज किया था लेकिन शिबू सोरेने की बहू और मामले में आरोपी सीता सोरेन ने  हाईकोर्ट में याचिका दायर कर 1998 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसके बाद हाईकोर्ट ने झामुमो सांसदों के खिलाफ दर्ज मामले को खारिज कर दिया था।

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