रायगढ़ पुलिस के काले कानून का हाईकोर्ट में पर्दाफाश, विशेष न्यायाधीश (एट्रोसिटीज) रायगढ़ के आदेश को भी किया गया रद्द
आशुतोष बोहिदार की जमानत बहाल , मिश्रा चेम्बर के मार्गदर्शन में पेश हुई थी याचिका

डमरुआ न्यूज/रायगढ़।
थाना तमनार में अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत अपराध दर्ज कर आशुतोष बोहिदार को एस0डी0ओ0पी0 पुलिस दीपक मिश्रा द्वारा गिरफ्तार करने के बाद उसकी नियमित जमानत विशेष न्यायाधीश रायगढ़ जितेन्द्र कुमार जैन द्वारा रद्द कर देने के आदेश के विरुद्ध हाईकोर्ट में पेश याचिका की हाईकोर्ट में सुनवाई हुई, जिसके पश्चात् आशुतोष बोहिदार की जमानत रद्द करने के संबंध में रायगढ़ के विशेष न्यायाधीश (एट्रोसिटीज) के आदेश को हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया एवं आशुतोष बोहिदार की नियमित जमानत को बहाल कर दिया।
हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान यह दिलचस्प एवं आश्चर्यजनक मुद्दा भी सामने आया कि आशुतोष बोहिदार पर लगाई गई सभी धारायें जमानती धारायें हैं लेकिन जमानतीय धारा होने के बाद भी पुलिस द्वारा उसे गिरफ्तार कर लिया गया एवं विशेष न्यायाधीश रायगढ़ (एट्रोसिटीज) ने भी पुलिस को रिमाण्ड देकर आरोपी को जेल भेज दिया एवं कई दिन तक जेल में रहने के दौरान जब उसे नियमित जमानत पर मुक्त किया गया, तो विशेष न्यायाधीश द्वारा उस पर यह शर्त लगा दी गई कि वह पुलिस थाना तमनार में प्रत्येक सोमवार को हाजिरी देगा ।
न्यायालय द्वारा थाना में हाजिरी देने की शर्त लगने पर थाना तमनार में आशुतोष के विरुद्ध और भी कई अपराध दर्ज कर लिये गए, ताकि थाना में हाजिरी देेने के लिये आते ही उसे दूसरे मामले में गिरफ्तार करके जेल भेज दिया जाए ।
इस विकट परिस्थिति में आरोपी ने पुलिस थाना में उपस्थिति नहीं दिया, जिस पर से एस.डी.ओ. पी. दीपक मिश्रा ने विशेष न्यायाधीश (एट्रोसिटीज) के न्यायालय से उसकी नियमित जमानत ही रद्द करा दिया।
हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान रिपोर्ट लिखाने वाले आदिवासी को बारम्बार तलब किया गया, जबकि विवेचना अधिकारी दीपक मिश्रा उक्त रिपोर्टकर्ता को हाजिर ही नहीं कर सके, जबकि आरोपी का तर्क था कि रिपोर्ट कर्ता आदिवासी है ही नहीं एवं पुलिस द्वारा जिन्दल के इशारे पर जल्दबाजी में तैयार किया गया कोई फर्जी आदमी है, जो तमनार में रहता ही नहीं है । यहां यह भी उल्लेखनीय है कि आशुतोष बोहिदार को अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत गिरफ्तार करके जेल तो भेज दिया गया, लेकिन रिपोर्टकर्ता का जातिप्रमाण पत्र हासिल करने में आज तक पुलिस नाकामयाब रही है । इस प्रकार सक्षम अधिकारी के जाति प्रमाण पत्र के बिना ही किसी भी आदमी को आदिवासी बनाकर और रिपोर्ट लिखकर आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया, और विशेष न्यायाधीश से रिमाण्ड लेकर जेल भी भेज दिया गया, लेकिन जब हाईकोर्ट में प्रकरण की सुनवाई शुरू हुई तो रिपोर्ट करने वाला आदिवासी अपने आप गायब हो गया ।
इस प्रकरण में हाईकोर्ट का ध्यान इस ओर आकर्षित किया गया कि जिन्दल के अत्याचार से प्रताड़ित आरोपी आशुतोष की गिरफ्तारी पर देश की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट ने भी रोक लगा दी एवं प्रदेश के गृह सचिव को नोटिस जारी किया है एवं आरोपी के विरुद्ध सभी प्रकरण जिन्दल के अधिकारियों के विरुद्ध शिकायत करने तथा थानेदार जी.पी. बंजारे के विरुद्ध शिकायत करने के बाद बनाए गए हैं ।
आशुतोष बोहिदार की ओर से हाईकोर्ट में सी.सी.टी.वी कैमरा के फुटेज पेश करके समूची एफ.आई.आर. रद्द करने की याचिका भी पेश हो चुकी है, जिसमें पुलिस द्वारा दर्शित समय पर आरोपी का अपने घर में रहने का फुटेज मौजूद है । आरोपी आशुतोष बोहिदार के अधिवक्ता एवं मिश्रा चेम्बर के सीनियर एडवोकेट अशोक कुमार मिश्रा ने हाईकोर्ट के आदेश पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उन्हें इस बात का अफसोस है कि इस आरोपी को रायगढ़ से न्याय नहीं मिला एवं न्याय पाने के लिये उसे हाईकोर्ट बिलासपुर से लेकर सुप्रीम कोर्ट दिल्ली तक की दौड़ लगाना पड़ा जबकि समूचा मामला जमानतीय अपराध का था, जिसमें निःशर्त जमानत पाना आरोपी का संवैधानिक अधिकार था । उन्होंने यह भी कहा कि जमानतीय प्रकरण में किसी को गिरफ्तार करना और जेल में निरूद्ध रखना भारतीय दण्ड विधान की धारा 341 एवं 342 के तहत दण्डनीय अपराध है , एवं इस अपराध हेतु दोषी अधिकारीगण दण्ड के पात्र हैं ।