नेताओं को चुनावी टोटके खूब भाते हैं। कुर्सी पाने के लिए उन्हें कोई अपशगुन नहीं चाहिए। क्या मुख्यमंत्री इन टोटकों को मानते हैं ?
चुनावी माहौल में सभी नेता ‘फाइनल एग्जाम’ की तैयारियों में जुट गए हैं। उम्मीदवार चुनाव जीतने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते। चुनाव के वक्त नेताजी अगर पब्लिक के बाद सबसे ज्यादा किसी को तवज्जोह देते हैं तो वह हैं टोने टोटके।
12 सितम्बर को जांजगीर चांपा जिले के तीनो विधानसभा जांजगीर चांपा, पामगढ़ और अकलतरा में संकल्प शिविर आयोजित था, जिसमे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को आना था परंतु अंतिम समय में उनका दौरा रद्द हों गया। जनता के बीच चर्चा है कि जिस तरह अकलतरा के लिए कहा जाता हैं कि यहां आने वाला दुबारा मुख्य मंत्री नही बनता। यहीं कारण है।
इसके पूर्व भी कई पूर्व मुख्यमंत्री का दौरा अकलतरा में हुआ जैसे
1958 में कैलाशनाथ काटजू
1973 में प्रकाशचंद्र सेठी
2003 में अजीत जोगी
2018 मे डा. रमन सिंह
इनमें से कोई भी दुबारा मुख्य मंत्री नही बन सका।
यू भी राजनीति में टोने टोटके का विशेष ध्यान दिया जाता हैं। जैसे यूपी कांग्रेस में एक वहम है। जो भी प्रदेश अध्यक्ष लखनऊ के कांग्रेस दफ्तर में पुताई कराता है, उसकी कुर्सी चली जाती है।
1992 में महावीर प्रसाद,
1995 में एनडी तिवारी,
1998 में सलमान खुर्शीद और
2012 में रीता जोशी,
सब इसी तरह हटे।
दुसरा कारण जांजगीर चांपा विधान सभा में स्थानीय नए चेहरे की मांग को लेकर संकल्प शिविर में हंगामा खड़े होने के आसार थे। यह भी कारण हो सकता है, ऐसा पार्टी से जुड़े लोगों का मानना है।
खैर कारण जो भी हो पर मुख्यमंत्री का ना आना जनता के बीच चर्चा का विषय तो है।