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कनौजिया राठौर समाज, समाज के प्रत्याशी को ही वोट करेगी। पार्टी को नहीं

कांग्रेस के लिए सिर दर्द, तो भाजपा के लिए अवसर हो सकता है।

कनौजिया राठौर समाज की बैठक ,कांग्रेस के लिए सिर दर्द तो भाजपा के लिए सिख होगी ।

     सक्ति विधानसभा क्षेत्र के ग्राम दुरपा में कनौजिया समाज की सामाजिक बैठक में गांवो के समाज प्रमुख, केंद्रीय अध्यक्ष (वर्तमान एवं पूर्व ) महासचिव, पार अध्यक्षों, कार्यकारिणी सदस्यों सहित वरिष्ठ जनो की बैठक में जिस तरह से समाज ने राजनीतिक निर्णय लिया वह दोनों राष्ट्रीय पार्टीयो के लिए चुनाव की दृष्टिकोण से बहुत अहम है।

     उपस्थित प्रबुद्ध व्यक्तियो से मिली जानकारी के अनुसार ,यदि राठौर समाज का कोई भी व्यक्ति चुनाव में किसी भी पार्टी से उम्मीदवार घोषित किया जाएगा। तब पूरा समाज उसे एक जुट होकर मतदान करेगा एवं तन मन धन से साथ देगा।

      इस कार्यक्रम की विशेषता है थी कि यहां समाज के कांग्रेसी और भाजपाई दोनों उपास्थित थे जो एक सुर में सहमति व्यक्त किए। 

    पूर्व विधायक पति एवं कांग्रेस नेता मनहरण राठौर , जनपद पंचायत सक्ति के अध्यक्ष राजेश राठौर, भाजपा से जिला पंचायत सदस्य श्रीमति उमा राजेंद्र राठौर और भाजपा कार्यकर्ता सुश्री आशा साव इस कार्यक्रम में उपस्थित थे। 

     मनहरण राठौर के नेतृत्व मे 2018 के चुनाव में , समाज ने एक जुट होकर कांग्रेस प्रत्याशी चरण दास महंत का साथ दिया था । और विधानसभा अध्यक्ष चरण दास महंत विशाल अंतर से चुनाव जीत गए थे। 

    राठौर समाज के सदस्य संख्या के अनुसार विधानसभा क्षेत्र में समाज के 35000 मतदाता है। 2023 के चुनाव में कांग्रेस से टिकिट की मांग के लिए मनहरण राठौर ने पूरे जोर सोर से अपने समर्थको के साथ दम भरा है । परन्तु इस क्षेत्र से चरण दास महंत का चुनाव लडना तय माना जा रहा है। ऐसे में यदि भाजपा इस क्षेत्र से किसी राठौर समाज के व्यक्ति के मैदान में उतरती हैं ,तब परिस्थिति बदल सकती है।

  डा. महंत और उनके चुनाव नीतिकारो के लिए सोचने वाली बात यह है, कि विगत चार साल में ऐसा क्या हुआ कि उनके समर्थन में खड़ा समाज आज मुखर विरोध मे खड़ा हैं? और चुनाव से पूर्व गिले सिकवे को दूर करने की कोशिश करना चाहिए। अन्यथा पार्टी का नुकसान तय है। 

    तो दुसरी तरफ सालों से राठौर समाज की अनदेखी करने वाले भाजपा के लिए यह घटनाक्रम एक अवसर की तरह है। यदि भाजपा राठौर समाज के व्यक्ति को मैदान में उतरती हैं। तो 2018 मे विशाल अंतर से मिली हार को 2023 मे जीत मे बदल सकती है। यह एक तरह से चुनाव पूर्व बोनस की तरह है। 

     देखने वाली बात है कि दोनो ही राष्ट्रीय पार्टी इस घटना क्रम को किस तरह से अपने पक्ष में लेती है। 

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