जांजगीर चांपा जिला की अनुसूचित जाति एवं पिछड़ा वर्ग बाहुल्य क्षेत्र अकलतरा विधानसभा कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी. पूर्व विधायक ठाकुर धीरेन्द्र सिंह, पूर्व विधायक ठाकुर राकेश सिंह ने कांग्रेस के किले को संभाले रखा था. लेकिन राज्य स्थापना के बाद कांग्रेस के ठाकुर राकेश सिंह को बीजेपी के छतराम देवांगन ने हराकर अकलतरा में बीजेपी को स्थापित किया. दो बार जीत हासिल कर चुके छतराम देवांगन को कांग्रेस के चुन्नी लाल साहू ने हराया. लेकिन 2013 के चुनाव मे बसपा से सौरभ सिंह ने बाजी मारी और विधायक चुने गए. फिर 2018 में सौरभ ने बसपा का साथ छोड़कर बीजेपी से चुनावी मौदान में आये और जीत दर्ज की ।
2018 में कांग्रेस का वोट महज 18% रहा और कांग्रेस पार्टी को तीसरे स्थान पर ही संतोष करना पड़ा। विपक्ष मे रहते भाजपा विधायक की सक्रियता ने कांग्रेस की मुश्किल मे इजाफा किया है।
पिछले दिनों जिला मुख्यालय में कांग्रेस पार्टी हाईकमान के कार्यक्रम में टिकिट के दो मुख्य अभ्यार्थियों के समर्थक जिस तरह से आपस में भीड़ गए थे, वो स्थिती भी पार्टी के लिए विपरित परिस्थितियों खड़ी कर सकती हैं।
विधानसभा की इस मुश्किल परिस्थिति का हल कांगेस प्रत्याशी को ही करना होगा। क्योंकी कांग्रेस के स्टार प्रचारक मुख्यमंत्री का दौरा अकलतरा विधानसभा में होगा ऐसा संशय ही है।
क्योंकि अकलतरा के विषय में एक किदवंती प्रचलित हैं की यहां आने वाले दोबारा नहीं बनते मुख्यमंत्री है।
1958 में अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कैलाशनाथ काटजू यहां आए थे। 1973 में प्रकाशचंद्र सेठी का आगमन हुआ था।फिर कभी सीएम नहीं बन पाए।
साल 2003 में विधानसभा चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री अजीत जोगी विभिन्न सीटों का दौरा कर रहे थे। इसी कड़ी में वह अकलतरा पहुंच गए। जिसके बाद विधानसभा चुनाव 2003 में कांग्रेस की करारी हार हुई और फिर 15 साल तक सत्ता से बाहर रही। साथ ही जोगी फिर कभी सीएम नहीं बन पाए।डा. रमन सिंह 15 साल के कार्यकाल में एक भी बार अकलतरा नहीं गए। अंतिम 2018 चुनाव प्रचार में अकलतरा तारोद चौक आए जिसके बाद विधानसभा चुनाव में करारी हार हुई, और सत्ता से बाहर हो गए।
अब इस किदवंती को के इत्तर मुख्यमंत्री यदि यहां पर चुनाव प्रचार में आते हैं, तब परिस्थिति बदल सकती हैं।