
Damrua news / रायगढ़। कृपा और सहानुभूति के वोट एक बार काम आ सकते हैं, लेकिन बार-बार काम आएं ये जरूरी तो नहीं. बार-बार सत्ता का सुख भोगने के लिए पांच सालों तक जनता के मुद्दों के लिए संघर्ष करना पड़ता है और अपने क्षेत्र का विकास करना पड़ता है। सिर्फ अपना और अपने कुछ लोगों का विकास करने से सिर्फ अपना व्यक्तिगत और पारिवारिक विकास ही हो सकता है, क्षेत्र का नहीं…, कुछ इस प्रकार की बातें खरसिया विधानसभा में पिछले पांच साल में राजनीति का शिकार हुए लोगों की जुबान पर बनी हुई हैं। वैसे खरसिया विधानसभा सीट कांग्रेस की अपनी सीट या यूं कहें कि यह कांग्रेस का गढ़ ही है। इस सीट को कांग्रेस का गढ़ बनाने के लिए पूर्व कांग्रेसी नेता स्व. नंदकुमार पटेल ने खूब खून पसीना बहाया, लोगों का विश्वास अर्जित किया और क्षेत्र सहित पूरे प्रदेश के लिए बेहतर कार्य भी किया। यही कारण है कि खरसिया विधानसभा में किसी भी अन्य राजनैतिक दलों के किसी भी प्रत्याशी को आज तक जीत नहीं मिली। पिछले विधानसभा चुनाव में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला। पिछले विधान सभा चुनाव में तस्वीर थोड़ी बदली जरूर थी, लेकिन स्व. नंदकुमार पटेल व उनके पुत्र दिनेश पटेल की नक्सलियों द्वारा हत्या कर दिए जाने के बाद पूरे प्रदेश में घटना के प्रति काफ़ी आक्रोश था, नक्सली साजिश रचने वालों को बेनकाब करने की मांग होने लगी और केवल इसी इकलौते मुद्दे पर जहां प्रदेश में कांग्रेस को सत्ता का सिंघासन मिल गया, वहीं स्व. नंदकुमार पटेल के परिवार के लिए भी लोगों में काफी संवेदना और सहानुभूति जागी. परिणामस्वरूप खरसिया विधानसभा सीट पर स्व. नंदकुमार के छोटे युवराज़ अर्थात् उमेश पटेल की कोई राजनैतिक और सामाजिक समझ न होने के बावजूद उन्हें सर आंखों पर बिठाया, यहां तक कि उनके मुकाबले में खड़े उनसे मजबूत प्रतिद्धंदी पूर्व आईएएस को भी लोगों ने सिर्फ इसीलिए भाव नहीं दिया कि लोग स्व. नंदकुमार से बेहद लगाव रखते थे और उनके जाने के बाद उनके परिवार को सान्त्वना और श्रद्धांजलि स्वरूप खरसिया विधान सभा की सीट देना चाहते थे।
इसके बाद क्या हुआ यह दिलचस्प है
पटेल परिवार के युवराज का बिना उनके राजनीतिक योग्यता के जनता ने राजतिलक कर दिया। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी तो पहली बार ही विधानसभा की सीढ़ियों में चढे़ उमेश पटेल को उच्च शिक्षा मंत्री की कुर्सी भी दे दी गई। खरसिया सहित पूरे प्रदेश के लोगों को लगा कि उमेश में भले ही राजनैतिक समझ नहीं है फिर भी इंजीनियर तो है ही इसलिए उच्च शिक्षा मंत्री के रूप में कार्य कर प्रदेश को शिक्षा के क्षेत्र में मॉडल राज्य बनाएँगे, लेकिन जो पहले से था उसका भी बंटाधार हो गया. अर्थात यह कि लोगों ने उमेश पटेल से जो उम्मीदें लगाई थी वह तो पूरी हुई नहीं, KIT जैसे न जाने कितने इंजीनियरिंग कॉलेज वेंटिलेटर पर चले गए. ना तो प्रदेश में रोजगार के नए अवसर युवाओं को मिल सके और नहीं स्थानीय उद्योगों में कोई हक मिल सका. उद्योगपति सत्ताधारियों की गोद में बैठे रहे और यह पूरा तमाशा जनता जनार्दन 5 साल तक खामोश होकर देखते रही.
झीरम से सहानुभूति बटोर कर सत्ता में आए और वही भूल गए
सरकार ने और स्वयं उच्च शिक्षा मंत्री बने पटेल परिवार के युवराज उमेश पटेल ने भी नक्सली हिंसा को खत्म करने व झीरमघाटी के साजिशकर्ताओं को बेनकाब कर हिसाब किताब करने की शपथ ली। लेकिन बीते पांच साल में झीरम के दोषियों का हिसाब किताब तो नहीं बल्कि स्वयं का हिसाब किताब खूब किया, ऐसी जन चर्चा है। उमेश पटेल अपने पिता को केवल जयंती और पुण्यतिथि में ही याद करते देखे गए।
जिले के इकलौते मंत्री प्रदेश तो दूर जिले में भी नहीं बना सके पैठ
ऐसा कहा जाता है कि पटेल परिवार के युवराज को जब सत्ता की चाबी मिल गई तो वो अपने परिवार और अपने गांव से बाहर ही नहीं निकल सके। जब भी निकलने की कोशिस की तो वो अपने ही चमचों और धंधेबाजों से घिरे रहे। इस कारण उनकी पैठ न तो रायगढ़ जिले में और न ही प्रदेश में हो सकी।
केआईटी कॉलेज को भी डुबो दिया
पटेल परिवार के युवराज उमेश पटेल पर जिले की एक मात्र इंजीनियरिंग कॉलेज केआईटी को भी डुबो देने का आरोप लगता रहा है। उच्च शिक्षा मंत्री रहते हुए भी वो अपने जिले के इंजीनियरिंग कॉलेज को नहीं संभाल सके, फिर पूरे प्रदेश का हिसाब करेंगे तो शासद साल के 365 दिन भी कम पड़ जाएं।
खरसिया विधानसभा में युवराज के विपक्ष में दो प्रबल प्रत्याशी
खरसिया विधानसभा में इस बार कांग्रेस से उमेश पटेल के अलावा भाजपा से जहां महेष साहू हैं तो वहीं एक अन्य निर्दलीय प्रत्याशी विजय जायसवाल हैं। ये दोनों ही विरोधी प्रत्याशी स्व. नंदकुमार पटेल के रहते कांग्रेस का झण्डा थामे हुए थे और कांग्रेस के गढ़ को बचाने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती थी, ऐसे में उनके नहीं रहने के बाद युवराज उमेश पटेल अपने गढ़ रक्षकों से ही दूर होते गए, नतीजा यह हुआ कि वही गढ़ रक्षक आज कांग्रेस का गढ़ भेदने के लिए रणभेरी बजाते दिख रहे हैं।