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जजों की नियुक्ति को लेकर सरकार और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के बीच मतभेद बरकरार

डमरुआ डेस्क/नई दिल्ली –जजों की नियुक्ति को नोटिफाई करने के सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम के आग्रह के बावजूद सरकार जल्दबाजी में नहीं दिख रही है। कॉलेजियम ने शीर्ष अदालत के लिए दो बार सिफारिश की है। इसके बजाय, इस बात पर जोर दिया है कि शीर्ष अदालत को पहले लंबे समय से लंबित मेमोरेंडम ऑफ प्रोसिजर ( MoP) को अंतिम रूप देने की जरूरत है। इसमें उच्च न्यायपालिका में नियुक्तियों के लिए शर्तें और समयसीमा की बात है। हाई कोर्ट के जज पद के लिए कुछ नामों पर सरकार और शीर्ष अदालत कॉलेजियम के बीच मतभेद हैं। सरकार के सूत्रों ने कहा कि संशोधित एमओपी को अंतिम रूप देना पिछले सात वर्षों से लंबित है। इस संबंध में सरकार समय-समय पर रिमाइंडर भेजती रहती है।

  • केंद्र ने जनवरी में भेजा था रिमांडर

आखिरी बार रिमाइंडर जनवरी में भेजा गया था। उस समय कानून मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिए खोज और मूल्यांकन (Search and Evaluation) समितियों की स्थापना की आवश्यकता दोहराई थी। प्रस्ताव सुप्रीम कोर्ट और सभी 25 हाई कोर्ट के लिए अलग-अलग सर्च और इवैल्यूएशन कमेटी स्थापित करने का है। ये कॉलेजियम की तरफ से सिफारिश किए जाने से पहले नियुक्ति के लिए नामों की जांच करेंगी। सर्च कमेटी की संरचना को रोक दिया गया है क्योंकि केंद्र के प्रस्ताव से अदालत की सहमति नहीं है। इसमें प्रत्येक निकाय में एक सरकारी प्रतिनिधि की बात है। इसे न्यायपालिका हायर जूडिशरी की नियुक्तियों पर कॉलेजियम के एकाधिकार के उल्लंघन के रूप में देखती है।

  • सुप्रीम कोर्ट की प्रक्रिया दिलचस्प

सर्च और इवैल्यूएशन कमेटियों के गठन को प्राथमिकता देने वाले केंद्र के रुख पर सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया देखना दिलचस्प होगा। यह देखते हुए कि उसने कॉलेजियम की सिफारिशों पर तुरंत कार्रवाई नहीं किए जाने के बारे में अपनी नाखुशी को छुपाया नहीं है। हालांकि सरकार ने कुछ को स्पष्ट कर दिया है। साथ ही उम्मीद जताई कि बाकी सिफारिशों को जल्द ही हरी झंडी मिल जाएगी, खोज और मूल्यांकन समितियों पर सरकार का अनुस्मारक कॉलेजियम की प्राथमिकताओं में इसकी पूर्ण स्वीकृति के बारे में संदेह पैदा करता है।

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