
डमरुआ न्युज/घरघोड़ा- इस बार चुनावी वादों का बड़ा ज्यादा ही शोर है,पक्ष अपने अधिकांश पूरे किये वादे पर अकड़ दिखा रही है तो वहीं विपक्ष उसे भूले बिसरे वादे याद दिलवा कर जनता को अपनी गली में बुला रही है,पर क्या लगता है जनता क्या इतनी भोली है?जी नहीं जनता अब भोली नहीं अब जनता बदल रही है और यह एक बड़ी चुनावी घंटी है जिसमें नोटा का प्रतिशत लगातार बढ़ रहा है,पिछले विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक 2% वोट नोटा को मिले थे,जी भले ही सुनने में ये 2 प्रतिशत बहुत कम लगता है पर आंकड़ों पर यदि जाएँ तो इसकी बराबरी लगभग 2,82,744 है अब समझिये मैने क्यू लिखा कि जनता बदल रही है,सरकार के प्रति रोश जनता अब दबाती नहीं बल्कि नोटा दबाती है।हाल फिलहाल नोटा नें सिर्फ अपने कदम ही जमाये हैं पर आने वाले दिनों में ये अच्छी खासी दहशत का माहौल बना सकता है,पार्टियों और टिकट धारियों पर,जनता एक भी मौका नहीं चुकेगी अपनी शक्ति दिखाने में।आज प्रत्याशियों के लिए केवल प्रतिद्वंदी ही एक चुनौती नहीं हैं बल्कि ‘नन औफ द अबोव” यानी कि नोटा भी एक चुनौती बनता जा रहा है क्योकि इसे सीधे तौर पर छवि खराब करने वाला प्रत्याशी समझा जा सकता है और सदैव के लिए एक प्रत्याशी पर प्रश्न चिन्ह लग सकता है।
अब आती है बात कि आखिर जनता कैसा नेता चाहती है तो इसे प्रत्याशियों को जनता बन कर ही समझना होगा और जनता का विश्वास जीतना होगा।आम जनता अपने विधायक अपने नेता को कैसे देखना चाहती है तो इसका जवाब बड़ा ही सीधा है और सटीक है कि जैसे चुनाव के पहले दौरा किया गया था जन जन तक पहुँचा गया था ठीक उसी तरह पद में रहते हुए भी आप आम जनमानस से सम्पर्क में रहें,आम आदमी की ज़रूरतें बहुत ही आम होती है जैसे सरकार की योजनाओं का लाभ,सड़कों की अच्छी हालत,सामाजिक सुधार व आर्थिक तरक्की और एक आम आदमी अपने विधायक को इतना सामर्थ्यवान मानता है कि वो इन सभी आवश्यकताओं को पूरा कर सकता है और जब इन सभी बुनियादी ज़रूरतों में ही उन्हें सालों मुह तकना पड़े तो नोटा ही एक मात्र रास्ता होता है अपना रोश प्रकट करने का चाहे इस बार प्रत्याशी कोई ही क्यों न हो।
इस बार चुनाव काफी जटिल है,बोल चाल की भाषा में भले ही जनता को कुर्सी पर बिठाने वाला कहा जाता है पर पार्टी के प्रत्याशियों को जनता नहीं चुनती,जनता ये तय नहीं करती कि एक पार्टी नें योग्य प्रत्याशी को टिकट दिया है या नहीं और कुछ चार पाँच नामों मे यदि योग्य चुनना हो तो उस योग्य का पैमाना ज़रुर जनता के अधिकार में होता है वह चाहे उसे स्वीकारे या नकारे।प्रत्याशियों को भी इस बार बड़ी सावधानी बरतनी होगी इस बार चुनावी ऊँट किसी भी करवट बैठ सकता है।जनता आपको मौका तभी देगी जब आप उनके साथ खड़े होंगे,बुनियादी ज़रूरतों पर उनका साथ देंगे।
*मेरी कलम से-*एक जनप्रतिनिधि से यह उमीद कभी नहीं की जाती कि वह व्यक्ति विशेष या गुट विशेष की राजनीति करे आपकी राजनीति व्यापक होनी चाहिए जन जन तक पहुँच वाली होनी चाहिए इस से अपनी कुर्सी की ही गरिमा नहीं बढ़ाते अपितु एक जननेता का ताज़ भी अपने नाम करते हैं और यकीन मानिये कि हर चुनाव में जनता यही चाहती है कि उनका चुना हुआ प्रत्याशी जननेता कहलाये गुट विशेष या व्यक्ति विशेष का नहीं।मेरी कलम नें वही लिखा जो जनता चाहती है आशा है इस चुनाव में जनता सफल हो।