
डमरूआ न्यूज/रायगढ़। कांग्रेस के विधायक प्रकाष नायक अपनी दूसरी पारी खेलने के लिए एक बार फिर से 2023 के चुनावी मैदान में उतरे हुए हैं लेकिन खेल का कुछ ज्यादा ही अनुभव होने के कारण सेल्फ गोल भी ज्यादा कर रहे हैं। ऐसा ही एक मामला जननायक से संबंधित है, कांग्रेस अपना जननायक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. रामकुमार अग्रवाल को मानती है, लेकिन विधायक प्रकाष नायक की सोच अपनी ही पार्टी से मिलती नहीं दिख रही है। शहर में उन्होंने जो होर्डिंग्स लगाए हुए हैं उसमें उन्होंने जननायक स्व. रामकुमार अग्रवाल को जगह देना तो दूर उन्हें जननायक भी मानने से इंकार कर दिया है। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि प्रकाष नायक ने अपने पिता स्व. डॉ. शक्राजीत नायक को जननायक बताते हुए उनकी तस्वीर को होर्डिंग में स्थान दिया है। ऐसे में कांग्रेस का एक बड़ा वर्ग अपने ही विधायक से इस बात के लिए भारी नाराज है, खासकर मारवाड़ी वर्ग अपने विधायक की इस हरकत से काफी आहत है। लोगों का कहना है कि स्व. रामकुमार न केवल स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे बल्कि वो 1957 से लेकर 1980 तक चार बार रायगढ़ के विधायक भी रहे हैं और केलो बांध निर्माण के लिए 38 वर्षों तक उनके संघर्ष की गाथा अमिट है।
भाजपा में भी हैं पितृ पुरूष, इनके बाद अब तक कोई दूसरा नहीं बना
कांग्रेस में जिस प्रकार स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. रामकुमार अग्रवाल को जननायक की उपाधि दी गई है और रायगढ़ के केवड़ाबाड़ी बस स्टैण्ड चौक में उनकी प्रतिमा स्थामित की गई है ठीक उसी प्रकार भाजपा ने भी स्व. लखीराम अग्रवाल को पितृ पुरूष की उपाधि दी है, लेकिन भाजपा ने अपना पितृ पुरूष समय और मांग के हिसाब से अब तक नहीं बदला है, वहीं कांग्रेस के विधायक पार्टी के इस फैसले से शायद असहमत हैं और वो स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. रामकुमार की पदवी छीन कर अपने स्व. पिता डॉ. शक्राजीत नायक को जननायक की उपाधि दिलाना चाहते हैं।
कौन हैं कांग्रेस के रियल जननायक
जननायक स्व. रामकुमार अग्रवाल का जन्म 1 जनवरी 1924 में एवं निधन 28 मार्च 2010 में हुआ था। इस दौरान वो स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन में प्रथम पंक्ति के नेतृत्व में शामिल रहे। सक्ती रियासत विलिनीकरण के सूत्रधार रहे, स्वतंत्रता आन्दोलन में रियासतों के विलीनीकरण हेतु 1947 में जेल यात्रा भी की थी। 1989-90 में मैत्री संघ सदस्य के रूप में सोवित रूस की यात्रा भी की थी। 1957-1980 तक चार बार रायगढ़ के विधायक रहे। 1956-1969 तक जनपद सभा के चेयरमैन भी रहे। 1966 से 67 में इन्होंने दुग्ध विक्रेता सहकारी संघ का गठन किया । जिला सहकारी बैंक के संस्थापक अध्यक्ष रहे। मध्यप्रदेष राज्य परिवहन निगम छ.ग. परिक्षेत्र रायपुर के चेयरमेन रहे। केलो बांध निर्माण हेतु 38वर्षों तक संघर्ष किया। आदिवासियों दलितों पिछड़ों को षिक्षा एवं रोजगार उपलब्ध कराया। घरघोड़ा नौतोड़ के आदिवासियों को जमीन वापस दिलाई एवं 32 लाख मुआवजा दिलवाया। भूमिहीन आदिवासियों दलितों पिछड़ों को जमीन एवं किसानों को फसल का सही मूल्य दिलवाया। कमजोरों पर अन्याय व जुल्म के खिलाफ प्रषासन एवं शासन के विरूद्ध सतत् आवाज बुलंद करते रहे। गाड़ीवान , षिक्षक, बुनकर, लेबर संघों के संस्थापक भी रहे। किसानों की जमीन में वृक्षों पर अधिकार दिलाए। स्कूलों कोलेजों की स्थापना, षिक्षा एवं रोजगार प्रसार व विकास कराया। रायगढ़ जिला बचाओ संघर्ष मोर्चा के संस्थापक रहे। किसानों मजदूरों छात्रों के हितों के लिए संघर्ष करते रहे। खतरनाक प्रदूषण और अंधाधंध औद्योगीकरण के खिलाफ जीवन के अंतिम सांस तक संघर्ष करते रहे और समाजवादी विचारधारा के साथ समभाव के समर्थक रहे। ऐसी विभूति को सम्मान देने के बजाए रायगढ़ विधायक प्रकाष नायक ने उनकी घोर उपेक्षा करते हुए अपने पिता को ही जननायक की उपाधि दे दी, वो तो भला हो भूपेष सरकार का कि इन्हें केवल विधायक बनाया वर्ना यदि मंत्री बना दिया जाता तो इस बात में भी कोई संदेह नहीं है कि जननायक स्व. रामकुमार का नाम हमेषा के लिए दबा कर अपने पिता को इस पदवी पर सदैव के लिए स्थापित कर दिया गया होता।