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आम आदमी पार्टी के खिलाफ मनीलॉन्ड्रिंग की ED शुरू कर सकता है जांच

डमरुआ डेस्क/ दिल्ली –दिल्ली आबकारी नीति घोटाले में आम आदमी पार्टी (AAP) की मुश्किल बढ़ने वाली हैं। प्रवर्तन निदेशालय ने सुप्रीम कोर्ट में यह बयान दिया कि वह आम आदमी पार्टी की जांच करने की योजना बना रही है। यह दिल्ली की शराब नीति की चल रही जांच के आधार पर है। सूत्रों के हवाले से यह खबर सामने आई है। ऐसे में चुनाव कानूनों के संदर्भ में आम आदमी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के साथ-साथ संगठन पर भी इसका असर पड़ सकता है। प्रवर्तन एजेंसी मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (PMLA) की धारा 70 को लागू करने की योजना बना रही है जो कंपनियों से संबंधित है। साथ ही यदि जरूरी हुआ तो पार्टी के वरिष्ठ नेताओं, पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसौदिया और पार्टी के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग मामले में बिना कोई अलग मामला दर्ज किए पार्टी को आरोपी बना सकती है।

  • चुनाव आयोग ले सकता है ऐक्शन

यदि एजेंसी अपनी योजना पर अमल करती है, तो यह मनी लॉन्ड्रिंग के लिए किसी राजनीतिक दल की जांच का पहला मामला हो सकता है। इससे आम आदमी पार्टी की मुश्किलें बढ़ जाएंगी। एक कठिन संभावना सिर्फ इसलिए नहीं कि पीएमएलए जांच के परिणाम के आधार पर जहां संपत्तियों की कुर्की का प्रावधान करता है। इसमें प्रथम दृष्टया पैसा पाया जाना और अपराध की आय’ स्थापित होने शामिल है। इस सूरत में इस पर चुनाव आयोग की ओर से प्रतिक्रिया आ सकती है। इससे पार्टी के मान्यता रद्द होने की भी आशंका हो सकती है। चुनाव आयोग के पूर्व वरिष्ठ कानूनी सलाहकार एसके मेंदीरत्ता कहा हालांकि मौजूदा कानूनों और नियमों में किसी की मान्यता रद्द करने का कोई प्रावधान नहीं है। भ्रष्टाचार के आधार पर पार्टी, संविधान का अनुच्छेद 324 (जो चुनाव आयोग को चुनावों का अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण प्रदान करता है) चुनाव आयोग को विवेक का इस्तेमाल करने और भ्रष्टाचार के लिए किसी पार्टी की मान्यता रद्द करने की व्यापक शक्तियां देता है।

  • दोषसिद्धी होने के बाद ही कार्रवाई

पिछले साल ही, चुनाव आयोग ने अनुच्छेद 324 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए 86 पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों (आरयूपीपी) को ‘डी-लिस्ट’ कर दिया था। इन्हें संबंधित मुख्य निर्वाचन अधिकारियों (सीईओ) की तरफ से फील्ड सत्यापन के बाद अस्तित्वहीन पाया गया था। भारत के संविधान और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29 ए। एक चुनाव कानून एक्सपर्ट ने कहा कि जिस तरह एक सांसद या विधायक को केवल दोषी ठहराए जाने पर ही अयोग्य ठहराया जा सकता है। उसी तरह किसी पार्टी के खिलाफ किसी भी कार्रवाई को केवल दोषसिद्धि के बाद ही माना जा सकता है। हालांकि, आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को चुनाव आयोग द्वारा अभी भी चुनाव के दौरान प्रिंट/टीवी विज्ञापन देने की आवश्यकता होती है। इसमें उनके खिलाफ लंबित मामलों की घोषणा की जाती है। एक्सपर्ट ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, चुनाव आयोग एक आरोपी राजनीतिक दल द्वारा इसी तरह के खुलासे का पता लगा सकता है।

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