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कटंगपाली और बोंदा के खदानों पर माफिया की नजर! कब जागेगा प्रशासन?

कटंगपाली और बोंदा

Sarangarh desk।।सूत्रों के मुताबिक, कटंगपाली और बोंदा में माफिया अब डोलोमाइट खनन का नया ठिकाना बनाने की योजना बना रहे हैं, जो छत्तीसगढ़ और ओडिशा में तस्करी का हिस्सा बनेगा।

कटंगपाली और बोंदा में डोलोमाइट का कारोबार बढ़ा

सारंगढ़ जिले के कटंगपाली और बोंदा क्षेत्रों में डोलोमाइट पत्थरों की प्रचुरता ने खनिज माफियाओं को सक्रिय कर दिया है। यहां डोलोमाइट पत्थर की तस्करी बड़े पैमाने पर हो रही है, जो कि केवल एक अवैध व्यापार के रूप में नहीं, बल्कि इस क्षेत्र के क्रेशर उद्योगों में इन पत्थरों की प्रोसेसिंग के लिए भी किया जा रहा है। तैयार की गई सामग्री को छत्तीसगढ़ तथा ओडिशा जैसे पड़ोसी राज्यों के बड़े उद्योगों तक पहुँचाया जाता है।

 

जहां क्रेशर संचालक नियमों का पालन करते हुए पत्थरों का इस्तेमाल गिट्टी बनाने के कार्य में कर रहे हैं, वहीं खनिज माफिया इन्हें अवैध रूप से, बिना रॉयल्टी चुकाए, ऊँचे दाम पर बेचकर अपना मुनाफा कमा रहे हैं। इस कारण से सरकार को राजस्व के रूप में भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है।

 

खनिज विभाग की चुप्पी पर उठ रहे प्रश्न

इस गंभीर स्थिति में सबसे बड़ा प्रश्न यह उठता है कि खनिज विभाग इन माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं कर रहा है। अधिकारियों की निष्क्रियता के पीछे के कारण स्पष्ट नहीं हैं, लेकिन यह स्थिति निश्चित रूप से चिंता का विषय है।

बोंदा क्षेत्र पर माफियाओं की नजर

सूत्रों का कहना है कि खनिज माफिया कटंगपाली और बोंदा दोनों ही क्षेत्र में अपनी गतिविधियाँ बढ़ाने की योजना बना रहे हैं। यहां डोलोमाइट पत्थरों की खदानें मिलने की संभावना से अवैध खनन में तेजी आ सकती है। हालांकि, फिलहाल इस प्रक्रिया की शुरुआत नहीं हुई है, लेकिन उम्मीद है कि माफियाओं की सक्रियता जल्द ही इस क्षेत्र में देखी जाएगी।

 

अवैध खनन का अंत कब होगा?

अवैध खनन के चलते पर्यावरण और अर्थव्यवस्था को होने वाले नुकसान को रोकने की आवश्यकता है। यह एक गंभीर स्थिति है, जो खनिज माफिया के बढ़ते आत्मविश्वास और सरकारी विभागों की लापरवाही के कारण और भी जटिल हो गई है। जब तक ठोस कदम नहीं उठाए जाते, यह अवैध गतिविधि जारी रहने की संभावना है।

 

सरकार और खनिज विभाग को इस गंभीर मुद्दे पर कड़ी कार्रवाई करने की आवश्यकता है, ताकि न केवल राजस्व की रक्षा की जा सके, बल्कि स्थानीय पर्यावरण और समुदाय की सुरक्षा भी सुनिश्चित की जा सके।

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