सारंगढ़ डमरुआ।।गुडेली पंचायत का नाम आते ही ज़िले में खनन को लेकर बहस तेज़ हो जाती है। यह कोई नई कहानी नहीं है। वर्षों से यह इलाका अवैध खनन की चर्चाओं में रहा है, और हर बार वही तर्क सामने आता है—“लीज़ की ज़मीन है।” सवाल यह नहीं कि लीज़ है या नहीं, सवाल यह है कि लीज़ होने के बाद भी क्या नियमों के मुताबिक खनन हो रहा है?
खनन माफिया अक्सर वैधता की ढाल के तौर पर लीज़ का हवाला देते हैं। काग़ज़ों में सीमाएं तय होती हैं—क्षेत्रफल, गहराई, उत्पादन क्षमता, पर्यावरणीय शर्तें। लेकिन ज़मीनी हकीकत बताती है कि इन शर्तों का पालन कितना हो रहा है, इसकी स्पष्ट जानकारी न तो सार्वजनिक है और न ही समय-समय पर साझा की जाती है। ऐसे में लीज़ का दावा सवालों से परे नहीं रह जाता।
स्थानीय लोग बताते हैं कि खनन गतिविधियाँ अक्सर तय समय और सीमाओं से आगे दिखाई देती हैं। भारी वाहनों की आवाजाही, धूल-धक्कड़, और रात के वक्त बढ़ती हलचल—ये सब संकेत हैं कि कहीं न कहीं निगरानी कमजोर पड़ रही है। यदि सब कुछ नियमों के अनुसार है, तो निरीक्षण रिपोर्ट, उत्पादन आंकड़े और रॉयल्टी का मिलान सार्वजनिक क्यों नहीं किया जाता?
सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि ज़िला प्रशासन और खनिज विभाग को इन बातों की जानकारी होने के बावजूद ठोस कार्रवाई का अभाव दिखता है। मीडिया में खबरें आती हैं, बाइट्स होती हैं, आश्वासन मिलते हैं—लेकिन नतीजा वही शून्य। समय बीतता है, मौसम बदलता है, और आरोप-प्रत्यारोप की फाइलें ठंडे बस्ते में चली जाती हैं। इस बीच, सिस्टम की इस खामोशी पर वे लोग मुस्कुराते हैं जिनके हित इससे जुड़े हैं।
यह आरोप लगाने की खबर नहीं है। यह जवाबदेही की मांग है।
* क्या हाल के महीनों में गुडेली क्षेत्र की खदानों का संयुक्त निरीक्षण हुआ?
* क्या उत्पादन और परिवहन के आंकड़ों का क्रॉस-वेरिफिकेशन किया गया?
* पर्यावरणीय शर्तों—जैसे गहराई, ब्लास्टिंग नियम, और पुनर्भरण—का पालन किस रिपोर्ट में दर्ज है?
* रॉयल्टी संग्रह और वास्तविक निकासी में अंतर तो नहीं?
यदि प्रशासन के पास इन सवालों के स्पष्ट उत्तर हैं, तो उन्हें सार्वजनिक किया जाना चाहिए। पारदर्शिता से ही संदेह खत्म होता है और भरोसा बनता है। चुप्पी, चाहे वह कितनी भी पुरानी क्यों न हो, अंततः परंपरा नहीं बननी चाहिए।
गुडेली की खदानें सिर्फ एक पंचायत का मुद्दा नहीं हैं; यह प्रशासनिक निगरानी, नियमों के पालन और सार्वजनिक हित की कसौटी है। जवाब आज नहीं तो कल देना ही होगा।
क्योंकि यह सिर्फ एक खबर नहीं—शुरुवात का अंतअभी होना बाकी है।