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शासकीय जंगल में फ्लाई ऐश डम्पिंग की अनुमति: प्रशासनिक विवेक या पर्यावरणीय जोखिम?

सारंगढ़-बिलाईगढ़ | जिला प्रशासन द्वारा ग्राम जोतपुर में शासकीय जंगल एवं कोटवार प्रयोजन की भूमि पर फ्लाई ऐश भू-भराव की अनुमति दिए जाने के बाद, यह मामला अब केवल एक प्रशासनिक आदेश नहीं रह गया है। यह फैसला पर्यावरण सुरक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य और प्रशासनिक जवाबदेही से जुड़े गंभीर प्रश्न खड़े कर रहा है।

कलेक्टर कार्यालय से जारी आदेश (पत्र क्रमांक 1435/क्षेत्र.कर.रा./2025, दिनांक 17.04.2025) के अनुसार लगभग 3.478 हेक्टेयर शासकीय भूमि पर 2 लाख मीट्रिक टन फ्लाई ऐश भराव की स्वीकृति दी गई है।

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जिस भूमि को जंगल कहा गया, क्या वही औद्योगिक डम्पिंग के लिए उपयुक्त है?

राजस्व अभिलेखों में संबंधित खसरा नंबर 110, 120 एवं 114 की भूमि को
“शासकीय भूमि – छोटे झाड़ युक्त जंगल एवं ग्राम कोटवार प्रयोजन” के रूप में दर्ज किया गया है।

पर्यावरण मामलों के जानकारों का कहना है कि

“जंगल श्रेणी की सरकारी भूमि का औद्योगिक कचरे के लिए उपयोग, बिना विधिवत वन-परिवर्तन अनुमति के, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 और केंद्र सरकार की फ्लाई ऐश अधिसूचनाओं की मूल भावना के विरुद्ध है।”

हालाँकि प्रशासन का पक्ष यह हो सकता है कि भूमि वन विभाग के अधीन नहीं है, लेकिन सवाल यह है कि
क्या ‘जंगल प्रवृत्ति’ वाली भूमि को औद्योगिक कचरा डम्पिंग के लिए चुना जाना विवेकपूर्ण है?

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नाले और भूजल के इतने पास फ्लाई ऐश—क्या जोखिम का आकलन हुआ?

आदेश में स्वयं स्वीकार किया गया है कि:

  • एक नाला डम्पिंग क्षेत्र से केवल 20 मीटर
  • दूसरा नाला 30–40 मीटर
  • रिहायशी क्षेत्र लगभग 250 मीटर दूरी पर स्थित है

CPCB और पर्यावरण वैज्ञानिकों के अनुसार फ्लाई ऐश में मौजूद भारी धातुएँ (आर्सेनिक, लेड, मरकरी) वर्षा जल के साथ बहकर
👉 नालों,
👉 मिट्टी,
👉 और भूजल
को प्रभावित कर सकती हैं।

यही कारण है कि राष्ट्रीय दिशानिर्देशों में पर्याप्त बफर ज़ोन और वैज्ञानिक सुरक्षा को अनिवार्य माना गया है।


शर्तें तो हैं, पर वैज्ञानिक सुरक्षा का अभाव क्यों?

कलेक्टर आदेश में कुछ सामान्य शर्तें जोड़ी गई हैं:

  • तिरपाल ढकाव
  • पानी का छिड़काव
  • रात्रिकालीन परिवहन पर नियंत्रण

लेकिन पर्यावरण नियम जिन तकनीकी व्यवस्थाओं को अनिवार्य मानते हैं, उनका आदेश में स्पष्ट उल्लेख नहीं है:

  • Impervious liner (ज़मीन को सील करने की परत)
  • Leachate संग्रह और उपचार
  • भूजल मॉनिटरिंग बोरवेल
  • Garland drain (बरसाती पानी नियंत्रण)
  • भू-तकनीकी व स्लोप स्टेबिलिटी रिपोर्ट

विशेषज्ञ मानते हैं कि

“इन व्यवस्थाओं के बिना फ्लाई ऐश डम्पिंग को वैज्ञानिक और सुरक्षित नहीं कहा जा सकता।”


ग्राम पंचायत की सहमति—प्रक्रियात्मक या वास्तविक?

दस्तावेज़ों में कुछ ग्राम पंचायतों द्वारा “कोई आपत्ति नहीं” प्रस्ताव का उल्लेख है।
हालाँकि इनमें:

  • विस्तृत ग्रामसभा चर्चा
  • पर्यावरणीय जोखिम पर जागरूकता
  • प्रभावित ग्रामीणों की आपत्तियाँ

का स्पष्ट विवरण उपलब्ध नहीं है।

यह प्रश्न भी उठ रहा है कि
क्या ग्राम स्तर पर लोगों को फ्लाई ऐश के दीर्घकालिक प्रभावों की पूरी जानकारी दी गई थी?


2 लाख टन क्षमता तय करने का आधार क्या?

डम्पिंग की मात्रा तय करते समय आम तौर पर:

  • भू-तकनीकी अध्ययन
  • वर्षा-अपवाह विश्लेषण
  • ढलान स्थिरता रिपोर्ट

की आवश्यकता होती है।
आदेश में इनका स्पष्ट उल्लेख न होना, निर्णय की तकनीकी मजबूती पर सवाल खड़े करता है।


प्रशासनिक दृष्टिकोण बनाम सार्वजनिक चिंता

यह रिपोर्ट यह दावा नहीं करती कि नियमों का जानबूझकर उल्लंघन हुआ है,
लेकिन यह अवश्य दर्शाती है कि:

  • निर्णय से जुड़े पर्यावरणीय जोखिमों का सार्वजनिक रूप से विस्तृत आकलन सामने नहीं आया,
  • और भविष्य में इसके दुष्परिणामों की जवाबदेही तय नहीं की गई

इसी कारण स्थानीय नागरिकों और पर्यावरण से जुड़े लोगों ने
👉 आदेश की पुनः समीक्षा,
👉 स्वतंत्र वैज्ञानिक जांच,
👉 और पारदर्शी सार्वजनिक सुनवाई
की मांग की है।


✍️ बहरहाल

यह मामला अब सिर्फ एक कंपनी या एक आदेश का नहीं है।
यह सवाल है कि
क्या विकास के नाम पर पर्यावरणीय सावधानी से समझौता किया जा रहा है?
और अगर आज जवाबदेही तय नहीं हुई, तो कल इसकी कीमत कौन चुकाएगा?


 

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