सारंगढ़-बिलाईगढ़।
जिले के गुडेली क्षेत्र में लंबे समय से चर्चा में रहे अवैध खनन के मामले ने अब प्रशासनिक स्तर पर गंभीरता हासिल कर ली है। इस संबंध में डमरुआ न्यूज़ द्वारा जिला कलेक्टर डॉ. संजय कन्नौजे से औपचारिक संवाद किया गया, जिस पर कलेक्टर ने मामले की गंभीरता को देखते हुए आगे जांच व आवश्यक कार्रवाई सुनिश्चित करने का आश्वासन दिया है।
गुडेली क्षेत्र में खनन गतिविधियों को लेकर सामने आ रहे तथ्यों और जमीनी सूचनाओं के आधार पर यह संवाद किया गया। प्रारंभिक आकलन के अनुसार, क्षेत्र में प्रतिदिन 15 हजार टन से अधिक पत्थर निकाले जाने की चर्चा है। यदि बाजार मूल्य 200 रुपये प्रति टन माना जाए, तो केवल कच्चे पत्थर से ही करीब 30 लाख रुपये प्रतिदिन का आंकड़ा सामने आता है। मासिक गणना में यह राशि 9 करोड़ रुपये से अधिक बैठती है।
गिट्टी के स्तर पर पहुंचते ही आंकड़े और भयावह
सूत्रों के अनुसार, निकाले गए पत्थरों को क्रेशरों में खपाकर गिट्टी तैयार की जा रही है, जिसकी बाजार कीमत 500 रुपये प्रति टन तक बताई जाती है। इस स्थिति में यह अनुमान लगाया जा रहा है कि पूरा कारोबार 18 करोड़ रुपये या उससे अधिक तक पहुंच सकता है।ये आंकड़े अंतिम नहीं हैं, लेकिन गतिविधियों के पैमाने को जरूर उजागर करते हैं।
कलेक्टर का रुख: गंभीरता को देखते हुए जांच
डमरुआ द्वारा प्रस्तुत तथ्यों पर कलेक्टर ने यह स्पष्ट किया कि मामले की गंभीरता को नजरअंदाज नहीं किया जाएगा और खनिज विभाग से समन्वय कर आगे की प्रक्रिया सुनिश्चित की जाएगी।
प्रशासनिक हलकों में इसे संकेत के रूप में देखा जा रहा है कि अब यह मामला केवल शिकायत तक सीमित नहीं रहेगा।
खनिज विभाग का जमीनी तंत्र सवालों के घेरे में
इस पूरे प्रकरण में ध्यान खनिज विभाग के फील्ड लेवल अमले पर भी जा रहा है। जानकारी के अनुसार, दीपक पटेल, जो मूल रूप से राजस्व निरीक्षक (RI) हैं, वर्तमान में खनिज विभाग में अटैच होकर निरीक्षक के रूप में प्रभार में बताए जाते हैं।
खनन क्षेत्रों का निरीक्षण, परिवहन पर नजर और नियमों के अनुपालन की जिम्मेदारी इसी स्तर पर तय होती है। ऐसे में यह सवाल स्वाभाविक है कि
* यदि सब कुछ नियमों के तहत है, तो इतनी बड़ी मात्रा में खनन कैसे हो रहा है?
* और यदि नियमों का उल्लंघन है, तो अब तक ठोस कार्रवाई क्यों नजर नहीं आई?
माफिया तंत्र की चर्चा और सिस्टम की चुप्पी
स्थानीय स्तर पर यह चर्चा आम है कि खनन से जुड़ा एक संगठित तंत्र लंबे समय से सक्रिय है, जो निरीक्षण और कार्रवाई के बीच की खामियों का लाभ उठाता रहा है।
कई बार कार्रवाई की बातें सामने आती हैं, लेकिन वे जमीन पर स्थायी असर छोड़ती नजर नहीं आतीं। ऐसे में विभागीय समन्वय और जवाबदेही पर सवाल उठना लाजिमी है।
अब निगाहें प्रशासनिक कार्रवाई पर
कलेक्टर द्वारा दिए गए आश्वासन के बाद अब यह देखना अहम होगा कि
* क्या वास्तविक और निष्पक्ष मैदानी जांच होती है?
* क्या खनिज विभाग में अटैच अधिकारियों की भूमिका की वस्तुनिष्ठ समीक्षा की जाती है?
* और क्या अवैध गतिविधियों से जुड़े तंत्र पर प्रभावी नियंत्रण संभव हो पाता है?
बहरहाल डमरुआ इस पूरे मामले पर लगातार नजर बनाए हुए है।यह सिर्फ अवैध खनन का विषय नहीं, बल्कि सरकारी राजस्व, पर्यावरण और प्रशासनिक पारदर्शिता से जुड़ा मामला है।
आश्वासन के बाद अब सबकी नजर इस बात पर है कि कार्रवाई कब और किस स्तर तक पहुंचती है।