रायगढ़ ब्रेकिंग न्यूज | डमरूआ न्यूज
पुलिस की डीएसआर से “डकैती” — 61 लाख की ठगी की खबर ‘गायब’, FIR को बना दिया गोपनीय!
रायगढ़ से अनोखी रिपोर्ट: जब डॉक्टर का भरोसा टूटा, पुलिस का रवैया भी कुछ कम दिलचस्प नहीं निकला!
रायगढ़ की पुलिस इन दिनों ख़बरों से ज़्यादा ख़बरों को “छुपाने” में मशगूल दिख रही है। रोजाना जिला पुलिस की ओर से थानों में दर्ज की गई FIR की जानकारी ‘पुलिस एंड मीडिया’ नाम के व्हाट्सएप ग्रुप में पत्रकारों को डीएसआर (डेली सिचुएशन रिपोर्ट) के रूप में भेजी जाती है। लेकिन 22 जून 2025 को इस ग्रुप में एक ऐसी “डकैती” हो गई जो पुलिस स्टेशन में नहीं, पुलिस के डिजिटल कक्ष में हुई – और लूट का शिकार बनी 61 लाख रुपये की एक हाईप्रोफाइल ठगी की खबर!
पुलिस की ‘गुप्त रिपोर्टिंग सेवा’ चालू!
विश्वसनीय सूत्रों की मानें तो डॉ. अरुण केडिया द्वारा दर्ज कराई गई 61 लाख रुपये की ठगी की FIR पहले पुलिस पोर्टल पर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध थी, लेकिन 2 दिन बाद ही उसे “सेंसिटिव लिस्ट” में डाल दिया गया। पत्रकारों के व्हाट्सएप ग्रुप में इसकी कोई सूचना जारी नहीं की गई। आखिर पुलिस इस खबर को क्यों छुपा रही है, यह सवाल अब सबके जहन में है।
क्या यह इसलिए कि मामला बड़े पैसे का है? या इसलिए कि इसमें पुलिस की “विलंबित कार्यवाही” की पोल खुलती है?
ठगी का मामला, FIR 6 महीने बाद!
डॉ. अरुण केडिया, जो कि रायगढ़ के प्रतिष्ठित अनुपम डायग्नोस्टिक सेंटर के संचालक हैं, वर्ष 2017-18 में दिल्ली की एज मेडिकल सॉल्यूशन्स प्रा. लि. से एक महंगी CT स्कैन मशीन खरीदते हैं। डिलीवरी के दौरान रास्ते में मशीन की पिक्चर ट्यूब को बदला गया, और फिर गारंटी, सर्विस, मरम्मत – सब वादे हवा हो गए। बाद में कंपनी ने डॉ. केडिया से एक और 13 लाख की रकम ठग ली, दो बाउंस चेक दिए, और गायब हो गई।
अब इस सबके बावजूद, पुलिस ने इस मामले में FIR दर्ज करने में पूरे छह महीने लगा दिए! जबकि आम नागरिक जब 30,000 के चेक बाउंस पर रिपोर्ट कराने जाता है, तो पुलिस उन्हें सीधे कोर्ट का रास्ता दिखा देती है।
पुलिस की चुप्पी – सवालों के घेरे में
तो क्या पुलिस ने इस हाई-प्रोफाइल धोखाधड़ी की रिपोर्ट को छुपाकर कोई “विशेष व्यवहार” किया है?
क्या डीएसआर ग्रुप से खबर हटाना सिर्फ “तकनीकी गलती” थी, या जानबूझकर किया गया डिजिटल सेंसरशिप?
क्योंकि रायगढ़ की आम जनता यह भली-भांति जानती है कि जब आम आदमी किसी कंपनी या व्यक्ति से ठगे जाने की रिपोर्ट दर्ज कराने जाता है, और अगर उसमें चेक बाउंस भी हो तो पुलिस अक्सर FIR से बचती है, यह कहकर कि “पहले कोर्ट जाइए!” — लेकिन यहां मामला उल्टा दिखता है।
निष्कर्ष: पुलिस की निष्क्रियता या मिलीभगत?
पुलिस की “डीएसआर गायब नीति” अब चर्चा का विषय बन चुकी है। सवाल यही है कि –
क्या रायगढ़ पुलिस अब खबरों को भी “जमानत” पर छोड़ने लगी है?
चेक बाउंस, करोड़ों की ठगी, महीनों बाद FIR – और ऊपर से मीडिया से खबर छुपाना!
जनता को जवाब चाहिए – क्योंकि सच कभी चुप नहीं रह सकता।
🖊️ रिपोर्ट: डमरूआ न्यूज़ टीम, रायगढ़
📍 आपका भरोसेमंद सूत्र, जो लापता खबरों की तलाश में रहता है!