सारंगढ़ जिले के गुडेली क्षेत्र में अवैध खनन एक गंभीर समस्या बन चुका है। यहां बड़ी संख्या में क्रेशर उद्योग बिना रॉयल्टी के पत्थरों का उपयोग कर रहे हैं, जिससे सरकार को भारी आर्थिक नुकसान हो रहा है। लेकिन सवाल यह है कि क्या केवल अवैध खनन करने वाले ही दोषी हैं? बिल्कुल नहीं! जितना बड़ा अपराध अवैध खननकर्ता कर रहे हैं, उतनी ही जिम्मेदारी अवैध रूप से निकाले गए पत्थरों को खरीदने वाले क्रेशर संचालकों की भी है।
अवैध खनन और क्रेशर उद्योग की मिलीभगत
गुडेली में अवैध खनन से निकाले गए पत्थरों की सप्लाई आसपास के क्रेशरों में खुलेआम की जा रही है। ये क्रेशर बिना रॉयल्टी के पत्थर खरीदकर मुनाफा कमा रहे हैं। सरकार को मिलने वाली रॉयल्टी की पूरी तरह अनदेखी की जा रही है, जिससे राजस्व को करोड़ों रुपये का नुकसान हो रहा है।
खनिज विभाग और प्रशासन इस अवैध गठजोड़ को लेकर चुप्पी साधे हुए हैं, जिससे साफ है कि या तो वे अनदेखी कर रहे हैं या फिर मिलीभगत का हिस्सा बन चुके हैं। लेकिन इस पूरे खेल में सिर्फ अवैध खनन करने वाले ही दोषी नहीं हैं, बल्कि उन क्रेशर मालिकों की भी उतनी ही भागीदारी है, जो इन अवैध पत्थरों को खरीद रहे हैं और इस गैरकानूनी धंधे को बढ़ावा दे रहे हैं।
कार्रवाई सिर्फ खननकर्ताओं पर क्यों? क्रेशर संचालक भी दोषी हैं!
कई बार प्रशासन सिर्फ अवैध खनन करने वालों पर कार्रवाई करता है, लेकिन सवाल उठता है कि इन पत्थरों को खरीदने वाले क्रेशर संचालकों पर कोई सख्ती क्यों नहीं होती?
अगर अवैध खनन से निकले पत्थरों को कोई न खरीदे, तो यह पूरा कारोबार खुद ही ठप हो जाएगा। लेकिन क्रेशर मालिक जानबूझकर इस खेल में शामिल हैं और अवैध खननकर्ताओं से सस्ते दामों में पत्थर खरीदकर मुनाफा कमा रहे हैं।
सरसरा क्षेत्र में बड़े पैमाने पर अवैध खनन, प्रशासन की अनदेखी!
गुडेली के सरसरा क्षेत्र में, गुरु मिनरल के समीप अवैध खनन का कारोबार जोरों पर है। यहां पोकलेन और जेसीबी मशीनों का बेधड़क इस्तेमाल कर पत्थरों का उत्खनन किया जा रहा है, और प्रशासनिक निगरानी पूरी तरह से नदारद है।
अवैध खनन से निकाले गए पत्थरों को हाइवा वाहनों के जरिए बिना रॉयल्टी के जिले के कई बड़े क्रेशरों में सप्लाई किया जा रहा है, जिसमें प्रमुख रूप से –
टीमरलगा का सर्वमंगला क्रेशर
मां नाथल दाई क्रेशर
गुडेली के अधिकांश क्रेशर शामिल हैं।
यह पूरी प्रक्रिया खुलेआम चल रही है, लेकिन खनिज विभाग और स्थानीय प्रशासन इसे पूरी तरह नजरअंदाज कर रहा है। बड़े पैमाने पर हो रहे इस अवैध खनन से सरकार को करोड़ों रुपये के राजस्व की हानि हो रही है, लेकिन अब तक किसी भी प्रकार की ठोस कार्रवाई नहीं की गई है।
प्रशासन की इस चुप्पी ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या अधिकारी खुद इस अवैध कारोबार में मिलीभगत किए हुए हैं, या फिर किसी दबाव के चलते कार्रवाई से बच रहे हैं?
इसलिए यह जरूरी है कि प्रशासन दोनों पक्षों पर एक समान कार्रवाई करे:
1. अवैध खनन करने वालों पर – जिन लोगों के पास कोई लाइसेंस नहीं है और जो अवैध रूप से सरकारी संपत्ति (खनिज) का दोहन कर रहे हैं, उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।
2. अवैध पत्थर खरीदने वाले क्रेशर संचालकों पर – इनपर भी सख्त कार्रवाई जरूरी है, क्योंकि वे जानते हुए भी अवैध खनिजों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
क्या हो सकती है कार्रवाई?
सरकार और प्रशासन यदि इस मामले को गंभीरता से लें, तो इन माफियाओं पर निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
अवैध क्रेशरों को सील किया जाए – जो क्रेशर बिना रॉयल्टी के पत्थर खरीदते हैं, उनके लाइसेंस रद्द किए जाएं और उनपर कानूनी कार्रवाई हो।
खनिज परिवहन पर सख्त निगरानी – बिना रॉयल्टी के खनिज परिवहन करने वाले वाहनों को जब्त किया जाए।
खनिज विभाग की जिम्मेदारी तय हो – अगर विभाग कार्रवाई करने में असफल रहता है, तो संबंधित अधिकारियों पर भी जिम्मेदारी तय की जाए।
स्थानीय प्रशासन की जवाबदेही – यदि प्रशासन आंखें मूंदे बैठा है, तो यह उसकी भी लापरवाही है।
अब तक क्यों नहीं हुई सख्त कार्रवाई?
गुडेली में अवैध खनन और क्रेशर उद्योग की यह साठगांठ कोई नई नहीं है। यह खेल लंबे समय से चल रहा है, लेकिन प्रशासन अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठा पाया है। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं:
1. प्रशासन की लापरवाही या मिलीभगत – कई बार अधिकारी इस तरह के अवैध धंधों पर कार्रवाई नहीं करते, क्योंकि इसमें आर्थिक लेन-देन होता है।
2. स्थानीय राजनीति का दबाव – कई बार नेता भी इस अवैध कारोबार से जुड़े होते हैं और कार्रवाई रुकवाने के लिए दबाव बनाते हैं।
3. प्रभावशाली माफिया – अवैध खनन और क्रेशर उद्योग से जुड़े लोग प्रभावशाली होते हैं, जिससे प्रशासन उन पर हाथ डालने से कतराता है।
आखिर कब जागेगा प्रशासन?
यदि प्रशासन इस अवैध खनन को रोकना चाहता है, तो उसे सिर्फ खननकर्ताओं पर कार्रवाई नहीं करनी चाहिए, बल्कि उन क्रेशर संचालकों पर भी शिकंजा कसना चाहिए जो इस अवैध पत्थर को खरीदकर मुनाफा कमा रहे हैं।
जब तक अवैध खनिजों की खरीद-बिक्री पर पूरी तरह रोक नहीं लगती, तब तक यह खेल चलता रहेगा। अब जरूरत इस बात की है कि प्रशासन अपनी निष्क्रियता छोड़कर इस गोरखधंधे पर सख्त कार्रवाई करे और दोनों पक्षों—अवैध खननकर्ता और अवैध पत्थर खरीदने वाले क्रेशर मालिकों—पर बराबर की सजा दी जाए।