इंटरनेट डेस्क: पटाखों का त्योहार हर वर्ष दीपावली पर धूमधाम से मनाया जाता है। रोशनी, खुशियों और उत्सव के इस मौके पर पटाखे फोड़ना कई लोगों के लिए आनंद का प्रतीक है। लेकिन इसका असर हमारे पर्यावरण और सेहत पर भी पड़ता है। पटाखों से निकलने वाला धुआं, गैसें और शोर न केवल वायु प्रदूषण को बढ़ाते हैं, बल्कि हमारे स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक असर डालते हैं।
पटाखों से होने वाला प्रदूषण: पटाखों में सल्फर, पोटैशियम नाइट्रेट, एल्युमीनियम, बैरियम और अन्य रसायन मिलाए जाते हैं, जो जलते समय विषैली गैसें और धुआं छोड़ते हैं। इनसे कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और अन्य जहरीली गैसें हवा में फैल जाती हैं, जो हमारे वातावरण को बुरी तरह प्रदूषित करती हैं। इसके अलावा, पटाखों के जलने से छोटे-छोटे ठोस कण (पार्टिकुलेट मैटर) भी हवा में फैल जाते हैं, जिससे धुंध जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
वायु प्रदूषण का प्रभाव: वायु प्रदूषण के कारण सांस की बीमारियां, जैसे अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और एलर्जी तेजी से बढ़ने लगती हैं। बच्चों और बुजुर्गों पर इसका असर विशेष रूप से अधिक होता है, क्योंकि उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होती है। इसके अलावा, हार्ट अटैक, स्ट्रोक और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां भी बढ़ सकती हैं। शोध के अनुसार, पटाखों के कारण हवा में पार्टिकुलेट मैटर (PM2.5 और PM10) का स्तर कई गुना बढ़ जाता है, जो हमारी सांसों में जाकर फेफड़ों को प्रभावित करता है।
शोर प्रदूषण का प्रभाव: पटाखों से न केवल वायु प्रदूषण होता है, बल्कि शोर भी फैलता है। पटाखों का शोर 100-120 डेसिबल तक पहुंच सकता है, जो कानों के लिए बेहद हानिकारक है। यह शोर विशेष रूप से बच्चों, बुजुर्गों और जानवरों के लिए अत्यधिक परेशान करने वाला होता है। इससे नींद में खलल, कानों में दर्द, सुनने की क्षमता में कमी, और यहां तक कि मानसिक तनाव भी बढ़ सकता है।
पर्यावरण पर असर: पटाखों से निकलने वाले जहरीले तत्व न केवल वायु प्रदूषण का कारण बनते हैं, बल्कि वे मिट्टी और जल स्रोतों को भी दूषित करते हैं। ये रसायन पेड़ों, फसलों और नदियों के पानी में मिलकर वनस्पति और जलीय जीवों के लिए भी हानिकारक साबित होते हैं। इसके अलावा, पटाखों के अवशेष सड़क और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर बिखर जाते हैं, जिससे कचरा बढ़ता है और सफाई में कठिनाई होती है।
स्वास्थ्य पर प्रभाव: पटाखों का प्रभाव हमारे शरीर के विभिन्न अंगों पर पड़ता है। पटाखों से निकलने वाले रसायनों के संपर्क में आने से त्वचा पर खुजली, एलर्जी और जलन जैसी समस्याएं होती हैं। आँखों में जलन, लालिमा, खुजली और जल जाने जैसी समस्याएं भी आम हो जाती हैं।
आर्थिक नुकसान: पटाखों पर खर्च होने वाला पैसा भी आर्थिक दृष्टि से नुकसानदायक है। लोग पटाखों पर बड़ी मात्रा में पैसा खर्च करते हैं, जो स्वास्थ्य और पर्यावरण को हानि पहुंचाने के अलावा आर्थिक नुकसान भी करता है। अगर इस पैसे को अच्छे कार्यों में लगाया जाए तो इसका समाज को लाभ मिल सकता है।
सकारात्मक विकल्पों की आवश्यकता: दीपावली के अवसर पर पटाखों का प्रयोग न करके हमें पर्यावरण के अनुकूल विकल्प अपनाने चाहिए। हमें अपने त्योहारों को खुशियों के साथ मनाने का तरीका बदलना चाहिए। दीये और मोमबत्तियां जलाकर, फूलों की सजावट करके, और सामुदायिक कार्यक्रम आयोजित करके हम बिना पटाखों के भी त्योहार की खुशी मना सकते हैं।
निष्कर्ष: पटाखों का प्रयोग हमारे पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न करता है। जरूरत है कि हम सभी इस बारे में जागरूक बनें और पटाखों का प्रयोग कम से कम करें या पूरी तरह से त्याग दें। ऐसे कदम न केवल हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ वातावरण प्रदान करेंगे, बल्कि हमारी परंपराओं को भी सुरक्षित और आनंदमय बनाएंगे।