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संजौली और मंडी में मस्जिद निर्माण पर विवाद: एक गहरा परिप्रेक्ष्य

 

निर्मल कुमार 

(लेखक आर्थिक,सामाजिक मुद्दों के जानकार हैं।यह उनके निजी विचार हैं।)

 

 

हिमाचलप्रदेश के संजौली और मंडी में हाल ही के विरोध प्रदर्शनों की जड़ अवैध मस्जिद निर्माण के आरोप हैं। अवैध निर्माण की चिंता ने इन विरोधों को जन्म दिया है, लेकिन यह मुद्दा केवल कानूनी मामलों तक सीमित नहीं है। यह साम्प्रदायिक सौहार्द्र, सामाजिक संतुलन, और धार्मिक आस्थाओं के आपसी मेल-जोल से भी गहराई से जुड़ा हुआ है। इस्लाम के अनुसार, मस्जिद का निर्माण नैतिक और वैध जमीन पर होना चाहिए ताकि पूजा और इबादत का स्थान पवित्र और वैध रहे। इससे संबंधित विवाद न केवल धार्मिक जिम्मेदारियों को प्रभावित करते हैं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक सौहार्द्र को भी चुनौती देते हैं।

 

मस्जिद का निर्माण: इस्लामी मान्यताएँ और सिद्धांत

 

इस्लाम में, मस्जिद केवल एक पूजा स्थल नहीं है; यह एक सामुदायिक केंद्र, आध्यात्मिकता का स्रोत, और नैतिकता का प्रतीक होती है। इसे इस्लामी सिद्धांतों के अनुसार एक पवित्र स्थान के रूप में देखा जाता है जहाँ केवल धार्मिक कर्मकांड ही नहीं, बल्कि सामाजिक एकजुटता और नैतिकता का पालन भी होता है। मस्जिद के निर्माण की प्रक्रिया से लेकर उसके संचालन तक हर कदम नैतिकता और कानून के दायरे में होना चाहिए।

 

मस्जिद निर्माण के लिए शरीयत (इस्लामिक कानून) के तहत यह अनिवार्य है कि उसका निर्माण केवल वैध, विवाद-मुक्त जमीन पर ही किया जाए। हदीस और कुरान की शिक्षाओं के अनुसार, किसी भी मस्जिद का निर्माण अनैतिक साधनों, जैसे अवैध भूमि या भ्रष्टाचार के धन से नहीं किया जाना चाहिए। अवैध या विवादित भूमि पर मस्जिद बनाकर उस स्थान की पवित्रता को खतरे में डालने से मस्जिद में की गई नमाज़ भी प्रश्नों के घेरे में आ सकती है। इसलिए, मस्जिद का निर्माण पूरी तरह से पारदर्शी, नैतिक और कानूनी रूप से शुद्ध होना चाहिए।

 

इस्लामी धर्मशास्त्र और धार्मिक स्थलों की पवित्रता

 

इस्लाम में धार्मिक स्थलों की पवित्रता का एक गहरा महत्व है। केवल बाहरी रूप से मस्जिद का निर्माण महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि उसका आधार, उसकी प्रक्रिया, और उसमें उपयोग की गई सामग्री भी धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण होती है। उदाहरण के लिए, कुरान में इस बात पर बल दिया गया है कि अवैध तरीके से प्राप्त संपत्ति को धार्मिक कार्यों में शामिल करना निषिद्ध है। ऐसे में अवैध भूमि पर बनी मस्जिद की वैधता संदेह के घेरे में आ जाती है।

 

हदीस के अनुसार, मस्जिद एक शुद्ध, विवाद-मुक्त और पारदर्शी प्रक्रिया द्वारा बनाई जानी चाहिए। यदि मस्जिद का निर्माण विवादित या अवैध भूमि पर किया जाता है, तो वह मस्जिद सामुदायिक असंतोष का कारण बन सकती है। इससे समाज में शांति की बजाय अशांति फैलने की संभावना बढ़ जाती है, जो कि मस्जिद के वास्तविक उद्देश्य के बिल्कुल विपरीत है। मस्जिद एक ऐसा स्थान होना चाहिए जहाँ लोग एकजुट होकर ईश्वर की इबादत कर सकें और नैतिकता के उच्चतम मानकों का पालन कर सकें।

 

स्थानीय सांस्कृतिक परंपराओं का सम्मान

 

मस्जिद निर्माण के विवाद का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इसे सांस्कृतिक और स्थानीय रीति-रिवाजों का सम्मान करना चाहिए। जब धार्मिक स्थल अवैध रूप से बनाए जाते हैं, तो यह समाज में असंतुलन और गलतफहमियों को जन्म देता है। भारत जैसे विविध और बहु-धार्मिक देश में, धार्मिक स्थलों का निर्माण न केवल धार्मिक भावना का सम्मान करना चाहिए, बल्कि स्थानीय समुदायों के रीति-रिवाजों और भावनाओं का भी ध्यान रखना चाहिए।

 

विशेष रूप से हिमाचल प्रदेश जैसे क्षेत्रों में, जहाँ सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता है, बाहरी लोगों की उपस्थिति और उनकी गतिविधियों को लेकर विशेष सावधानी बरतने की जरूरत होती है। बाहरी समुदायों को शरण देने और स्थानीय संस्कृति को बनाए रखने के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है। अगर किसी बाहरी समुदाय की गतिविधियों से स्थानीय सांस्कृतिक संतुलन बिगड़ता है, तो यह साम्प्रदायिक तनाव को जन्म दे सकता है। इसलिए, मस्जिद निर्माण के दौरान यह ध्यान रखना चाहिए कि स्थानीय रीति-रिवाजों का सम्मान हो और साम्प्रदायिक सौहार्द्र बना रहे।

 

साम्प्रदायिक सौहार्द्र का महत्व

 

भारत में धार्मिक विविधता सदियों से एक मजबूत पहलू रही है। यहाँ सभी धर्मों के लोग एक साथ रहते हैं और धार्मिक स्थलों का सम्मान करते हैं। मस्जिद, मंदिर, चर्च, गुरुद्वारा—हर धार्मिक स्थल को साम्प्रदायिक सौहार्द्र के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। जब किसी धार्मिक स्थल का निर्माण कानून का पालन करते हुए और स्थानीय समुदाय की सहमति से होता है, तो वह एकता और शांति का संदेश देता है।

 

संजौली और मंडी में मस्जिद निर्माण के विवाद के बाद, मस्जिद प्रबंधन समितियों ने जो कदम उठाए, वे सराहनीय हैं। उन्होंने अवैध निर्माण के हिस्सों को गिराने का निर्णय लिया, ताकि समाज में साम्प्रदायिक तनाव न बढ़े और शांति बनी रहे। यह एक महत्वपूर्ण कदम है जो यह दर्शाता है कि कानून का पालन करते हुए धार्मिक स्थलों का निर्माण किया जाना चाहिए।

 

कानून और सामुदायिक जिम्मेदारियाँ

 

धार्मिक स्थलों का निर्माण केवल धार्मिक जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि कानूनी जिम्मेदारी भी है। भारत का संविधान हर नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है, लेकिन इसके साथ यह भी सुनिश्चित करता है कि इस अधिकार का दुरुपयोग नहीं किया जाए। जब कोई धार्मिक स्थल, जैसे मस्जिद, मंदिर, या चर्च, वैध प्रक्रिया और कानून के तहत बनाए जाते हैं, तो इससे समाज में विश्वास और एकता बढ़ती है।

 

कानूनी तौर पर, भूमि का स्वामित्व विवादित नहीं होना चाहिए और सभी आवश्यक अनुमतियाँ और स्वीकृतियाँ प्राप्त करने के बाद ही निर्माण कार्य शुरू किया जाना चाहिए। मस्जिदों या अन्य धार्मिक स्थलों के अवैध निर्माण से सामाजिक असंतोष पैदा हो सकता है, जो कि साम्प्रदायिक तनाव को बढ़ावा दे सकता है।

 

धार्मिक स्थल: एकता का केंद्र

 

धार्मिक स्थल जैसे मस्जिद, मंदिर, और चर्च समाज में शांति, एकता और सामंजस्य का प्रतीक होते हैं। इनका उद्देश्य केवल पूजा करना नहीं होता, बल्कि समाज के लोगों को एकजुट करना और नैतिकता का पालन करना होता है। जब किसी धार्मिक स्थल का निर्माण विवादों में घिर जाता है, तो उसका वास्तविक उद्देश्य खो जाता है। मस्जिद का निर्माण अगर विवाद-मुक्त और नैतिक तरीके से किया जाता है, तो वह समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।

 

महात्मा गांधी के विचार भी इस बात पर जोर देते हैं कि किसी भी धार्मिक स्थल का निर्माण और उसका संचालन नैतिकता, अहिंसा और सभी धर्मों के प्रति सम्मान के आधार पर होना चाहिए। उन्होंने हमेशा कहा कि धार्मिक आस्था का पालन समाज के सामूहिक हित के अनुसार होना चाहिए, न कि उसके विपरीत। गांधी जी का मानना था कि धार्मिक स्थलों का निर्माण समाज में शांति और एकता बनाए रखने के लिए होना चाहिए, न कि विभाजन और तनाव के लिए।

 

निष्कर्ष

 

संजौली और मंडी की घटनाएँ हमें यह सिखाती हैं कि धार्मिक जिम्मेदारियाँ केवल पूजा करने तक सीमित नहीं होतीं, बल्कि वे कानून और नैतिकता से भी जुड़ी होती हैं। धार्मिक स्थलों का निर्माण यदि विवाद-मुक्त, नैतिक और कानून के दायरे में होता है, तो वे समाज में शांति और सामंजस्य का प्रतीक बनते हैं। सामुदायिक एकता और स्थानीय रीति-रिवाजों का सम्मान करना न केवल समाज के लिए अच्छा है, बल्कि यह धार्मिक स्थलों की पवित्रता और उद्देश्य को भी बनाए रखने में मदद करता है।

 

इस प्रकार, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि धार्मिक स्थलों का निर्माण केवल धार्मिकता के आधार पर ही नहीं, बल्कि कानूनी और सामाजिक मानदंडों के अनुसार हो। तभी हम एक सशक्त, शांतिपूर्ण, और सौहार्द्रपूर्ण समाज का निर्माण कर सकते हैं, जहाँ सभी धर्म और समुदाय एक साथ मिल-जुलकर रह सकें।

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