बिलासपुर bilaspur high court । हाईकोर्ट ने मरवाही के पूर्व विधायक और छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के नेता अमित जोगी द्वारा दाखिल याचिका खारिज कर दी है। याचिका में अमित जोगी ने वर्ष 2019 में गौरेला थाने में उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर और बाद में दायर आरोप पत्र को निरस्त करने की मांग की थी। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की बेंच ने याचिका खारिज कर दी है।
बता दें कि चुनाव में नामांकन के समय गलत जन्म स्थान बताने को लेकर तत्कालीन बिलासपुर जिले के गौरेला थाने में बीजेपी की समीरा पैकरा ने अपराध पंजीबद्ध कराया था। बीजेपी की समीरा पैकरा मरवाही विधानसभा चुनाव 2013 में अमित जोगी से हार गईं थीं। उसके बाद उन्होंने हाई कोर्ट में अमित जोगी के खिलाफ इलेक्शन पिटीशन दायर कर अमित की नागरिकता को चुनौती दी थी। इसमें कहा गया था कि अमित जोगी ने नामांकन के समय अपने जन्म स्थान का गलत प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया है। समीरा पैकरा की शिकायत के अनुसार अमित जोगी के दस्तावेजों में अमेरिका के टेक्सास, एमपी के इंदौर और मरवाही के सारबहरा, 3 अलग-अलग जगहों में जन्म स्थान का होना बताया गया है। कोर्ट में अमित जोगी ने अपने अमेरिका में जन्म होने की बात को स्वीकार किया था। अमित ने मरवाही की जनता को छला है। मामले में लंबे समय की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने समीरा के याचिका को खारिज कर दी थी। इसके बाद समीरा पैकरा ने अमित जोगी के जन्म स्थान के मामले को ही लेकर गौरेला थाने एफ आईआर दर्ज कराई। यह अपराध भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 465, 467, 468 और 471 के अंतर्गत दर्ज हुआ था। एफआईआर के बाद अमित जोगी ने एक वीडियो जारी कर कहा था कि उनके खिलाफ एफआईआर साजिश के तहत दर्ज कराई गई है। अमित जोगी ने इस एफ आईआर और आरोप पत्र को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। उनका तर्क था कि इस मामले में पहले चुनाव याचिका भी दायर की गई थी, जिसे जनवरी 2019 में कोर्ट ने खारिज कर दिया था। इसके कुछ ही दिनों बाद, 3 फ रवरी 2019 को गौरेला थाने में नई शिकायत दर्ज कराई गई, जबकि इसमें कोई नया तथ्य प्रस्तुत नहीं किया गया। दूसरी ओर, राज्य सरकार की ओर से उप महाधिवक्ता शशांक ठाकुर ने कोर्ट में यह स्पष्ट किया कि इस मामले में पूरी कानूनी प्रक्रिया का पालन किया गया है और जांच के बाद आरोप पत्र दाखिल किया गया है। सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने कहा कि एफ आईआर या आरोप पत्र को रद्द करने के अधिकार का केवल असाधारण मामलों में ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए और सामान्य रूप से कोर्ट को संज्ञेय अपराधों की जांच में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।