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धूमधाम से मनाया गया हरतालिका तीज का पर्व। पति की लंबी आयु के लिये महिलाओं ने रखा निर्जला व्रत।

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धूमधाम से मनाया गया हरतालिका तीज का पर्व।

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पति की लंबी आयु के लिये महिलाओं ने रखा निर्जला व्रत।

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खबरों का तांडव, हरिओम पाण्डेय एमसीबी। जिले के मनेन्द्रगढ़ झगराखाण्ड सहित आसपास के कोयलांचल क्षेत्र में पति के दीर्घायु होने और परिवार की सुख समृद्धि के लिए पूरे श्रद्धा और विश्वास के साथ शुक्रवार को परंपरागत तरीके से हरतालिका व्रत (तीज) का पर्व मनाया गया। महिलाओं ने निर्जला रहकर रात्रि जागरण किया और रात भर शिव और पार्वती का पूजन किया। इस दौरान महिलाएं भक्ति गीतों के साथ भजन-कीर्तन करती रही । महिलाओं एवं युवतियों ने हाथों पर आकर्षक मेंहदी रचाई और झूले का आनंद लिया।

आपको बता दें की हरितालिका तीज का उत्सव महिलाओं का उत्सव है। जब सम्पूर्ण प्रकृति हरी ओढ़नी से आच्छादित होती है उस अवसर पर महिलाओं के मन मयूर नृत्य करने लगते हैं। वृक्ष की शाखाओं में झूले पड़ जाते हैं। सुहागन स्त्रियों के लिए यह व्रत बहुत महत्व रखता है। आस्था, उमंग, सौंदर्य और प्रेम का यह उत्सव शिव-पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इसे इच्छित वर और अखंड सौभाग्य के लिए मनाया जाता है। चारों ओर हरियाली होने के कारण इसे हरितालिका तीज कहते हैं। इस अवसर पर महिलाएं झूला झूलती हैं, लोकगीत गाती हैं और आनन्द मनाती हैं।

पंडित नित्यानंद द्विवेदी ने बताया की सौभाग्य और सदा सुहागन रहने के लिए महिलाएं इस व्रत को करती है ।इसको हरतालिका व्रत के नाम से भी लोग जानते है। यह व्रत भादो मास के शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाया जाता है। कथा के अनुसार गौरी शिव से शादी करना चाहती थी जबकि उनके पिता गौरी की शादी भगवान विष्णु से कराना चाहते थे लेकिन गौरी शिव को मन ही मन अपना पति मान चुकी थी। यह बात गौरी ने अपने सहेलियों को बताया। सहेलियां गौरी को उसके घर से लेकर जंगल पहुंची जहां वे लोग मिट्टी का शिवलिंग बनाकर साधना करने लगी। भगवान शिव ने दर्शन देकर जन्म -जन्म तक पति के रूप में रहने का वरदान दिया। जिस दिन शिव ने गौरी को वरदान दिया वह दिन भादो महीने की शुक्ल पक्ष तृतीया की तिथि थी। तभी से इस व्रत को मनाने की परंपरा शुरू हुई।

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