
मृतक नेताओं के बहाने कब तक मांगते रहोगे वोट, कुछ विकास के नाम पर भी हो जाए तो बेहतर होता
डमरुआ न्यूज़ /रायगढ़। राहुल गांधी जब भी कुछ बोलते हैं तो मजाक से ज्यादा कुछ भी नहीं लगता है उनकी बच्चों सी हरकतें अक्सर समर्थक बुद्धिजीयों के मुँह पर तमाचा जड़ती रहती हैँ. ठीक उसी प्रकार जब वो कांग्रेस के प्रत्याशियों का प्रचार करने खरसिया पहंुचे तो उन्हांेने कहा कि उमेश पटेल के पिता यदि जीवित होते तो वो आज यहां के मुख्यमंत्री होते, मैं चाहता हूं कि उनके पुत्र उमेश पटेल को आप सब वोट दे कर जिताएं। मैं उनके हत्यारों को जरूर सजा दिलवाउंगा। सवाल यह है कि आखिर पांच साल तक प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होने और प्रदेश को एटीएम के रूप में स्तेमाल करने के दौरान झीरम हमला और स्व. नंदकुमार पटेल उन्हें या यहां की भूपेश सरकार अथवा स्व. नंदकुमार पटेल के सुपुत्र उमेश पटेल को यह बात क्यों नहीं याद आई। सत्ता मिलने के बाद ये राज-काज में (गोबर-गोठान घोटाला, कोयला घोटाला, शराब घोटाला, महादेव सट्टा सहित अन्य घोटालों में लगने वाले आरोप) इतना व्यस्त हो गए कि घटना के 10 साल बाद आज राहुल गांधी को खरसिया आने पर याद आया कि झीरम में ऐसी कोई घटना हुई थी और उस घटना में शामिल लोगों को अब तक सजा नहीं मिली है। वो विकास के नाम पर या उमेश पटेल की किसी एक भी उपलब्धि के नाम पर जनता से वोट नहीं मांग सके क्योंकि उनके पास उपलब्धि गिनाने घोटालों से इतर कुछ था भी नहीं. तो उन्होंने 10 साल भी झीरम की घटना पर सिंपैथी बटोरते हुए अपने लायक उच्च शिक्षा मंत्री उमेश पटेल को चुनाव में जीत दिलाने की अपील की है.
25 मई 2013 को झीरम घाटी पर नक्सलियों ने प्रदेश के कई वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं की हत्या कर दी थी, उस वक्त राहुल गांधी छत्तीसगढ़ और खरसिया आए थे और यह कहा था कि किसी भी हाल में झीरम के हत्यारों को नहीं छोड़ेंगे। उस वक्त प्रदेश में भाजपा की सरकार थी, कांग्रेस की ओर से विपक्ष में रहते हुए झीरम के हमलावरों को बेनकाब करने और उनको सजा दिलाने की मांग जोर शोर से होती रहती थी, लेकिन जैसे ही प्रदेश में कांग्रेस ने स्वयं सरकार बना ली तो वो इस झीरम की घटना को भूल गए। झीरम हमले में महेन्द्र कर्मा, विद्याचरण शुक्ल, कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल व उनके बड़े पुत्र दिनेश पटेल की भी नक्सलियों ने हत्या कर दी थी। तब स्व. नंदकुमार पटेल के छोटे पुत्र उमेश पटेल ने उत्तराधिकार सम्हाला और परंपरागत रूप से कांग्रेस का गढ़ और सिम्पैथी वोटों के सहारे उमेश पटेल खरसिया विधानसभा से विजयी हुए, लेकिन तब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार नहीं बन सकी थी ऐसे में भी ज़ब उमेश पटेल से झीरम हमले के सवाल पूछने पर वो स्वयं कहते थे कि झीरम के हमलावरों और साजिशकर्ताओं को नहीं बख्सेंगे। लेकिन जैसे ही कांग्रेस की सरकार प्रदेश में बनी और वो स्वयं तो उच्च शिक्षा मंत्री बन गए तो कुर्सी की रक्षा करते हुए उन्होंने एक बार भी सार्वजनिक तौर पर झीरम हमले के दोषियों को सजा दिलाने का जिक्र तक नहीं किया। यहां तक की उमेश पटेल और सरकार न जाने किस भय से इस सवाल से ही बचते दिखे.
विकास कार्य के बदले नहीं बल्कि स्व. पिता के पुत्र होने के नाते मांग रहे वोट
खरसिया परंपरागत रूप से कांग्रेस का गढ़ रहा है वहां कांग्रेस के अलावा कोई भी नहीं जीता है फिर भी 5 साल सरकार और स्वयं उच्च शिक्षा मंत्री उमेश पटेल की उपलब्धि शायद कोरी होने की वजह से चुनाव प्रचार के लिए खरसिया पहुंचे राहुल गांधी उमेश पटेल की कोई एक भी उपलब्धि नहीं गिना सके , लेकिन वो यहां चुनाव प्रचार करने आए थे तो स्व. नंदकुमार पटेल का बेटा होने के नाते उमेश पटेल को वोट देकर जिताने की अपील राहुल गांधी ने सभा को संबोधित करते हुए किया।
झीरम के गुनहगारों को पकड़ो अथवा छोड़ो, प्रदेश से भ्रष्टाचार मिटाने बोरिया बिस्तर बांधो
राहुल गांधी अपनी प्रदेश सरकार की विफलताओं का पिटारा स्वयं ही खोलकर चले गए। उन्होंने यही कहा कि वो हत्यारों को सजा दिलवाएंगे अर्थात अब तक पांच साल तक सत्ता में काबिज उनकी सरकार और उस सरकार के मुखिया भूपेश बघेल ने झीरम के हत्यारों को संरक्षण दिया है। या यूं कहें कि इस दिशा में उनका कोई भी प्रयास नहीं रहा जिसे वह बता सकें, तो 5 साल तक आखिरकार उन्होंने किया क्या है, अब जो भी हो 5 साल तक प्रदेश की जनता को गुमराह कर अपना उल्लू सीधा करने का काम करने वालो, अब सत्ता के सिंहासन से उतरने की बारी है, सत्ता और सिंहासन को छोड़ना होगा क्योंकि जनता अब जाग चुकी है, यदि इस बार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सत्ता से हटती है तो उन पर लगे दर्जनों घोटालों से न केवल पर्दा उठ जाएगा बल्कि कई वरिष्ठ सफेदपोश जेल की सलाखों के पीछे भी होंगे.